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Motivational story short in hindi sense of responsibility

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शुक्रवार, 4 जून 2021

Motivational story short in hindi sense of responsibility

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Motivational story in hindi- Is spirituality superior to humanity?

प्रेरक कहानी हिंदी में- sense of responsibility क्या अध्यात्म मानवता से श्रेष्ठ है?

जिम्मेदारी एक एहसास
जिम्मेदारी एक एहसास है, जिसे हम सब महसूस तो करते हैं, परंतु क्या उसके अहसास को अपनी अंतरात्मा तक अनुभव कर पाते हैं। Motivational story short in hindi में आइए एक छोटी प्रेरक कहानी से प्रेरणा लें। 
जाने की जिम्मेदारी का एहसास हमे कर्तव्य करने के लिए प्रोत्साहित करता है या हमे बाधित करता है। कहीं हम जिम्मेदारी का एहसास होते हुए भी किसी पर दोषारोपण कर अथवा बहाने बना कर अपना पल्ला तो नही झाड़ लेते। पढ़े Motivational story short in hindi की यह छोटी सी कहानी।

Motivational short story in hindi Responsibility or dharm

पुरानी बात है किसी गांव में कहीं मेला लगा हुआ था। उसी मेले  से कुछ ही दूरी पर एक कुंआ था। कुंआ ऐसा जिसके पाट नहीं।  उस कुंए में एक आदमी गिर जाता है। घबराहट और भय से वह चिल्लाता है, "बचाओ बचाओ..!"  
तभी वहां से एक बौद्ध भिक्षु गुजरता है।  आदमी की बचाओ की आवाज उसके कानो में पड़ती है। भिक्षु कुंए के पास जाकर उसने झांक कर नीचे की ओर देखता है।  वह आदमी चिल्लाता है, "भिक्षु जी, मुझे कृपया बाहर निकालिए! यहां मेरा दम घूट रहा, मै मर रहा हूं मेहरबानी करे। मुझे तैरना नहीं आता, मुझे लगता है ज्यादा देर बच भी नही पाऊंगा। यहां मैं एक छोटी सी ईंट को पकड़े हूं, परंतु मुझे नही लगता मै इसे ज्यादा देर पकड़े रख पाऊंगा।"
उसकी बात सुनने के बाद अब भिक्षु ने कहना शुरू किया, "बाहर निकलकर क्या क्या करोगे बाहर भी दुख ही दुख है, यहां हर ओर दुख सब जगह दुख है। क्योंकि जो कुंए के बाहर है वे भी एक बड़े कुंए में पड़े हैं। और भगवान ने कह हैं - बुद्ध ने कहा है, दुख तो जीवन है। तो जीवन से मुक्त हुए बिना दुख से कोई बाहर हो नहीं सकता । इसलिए कुंए से निकलकर भी क्या करोगे? जीवन से निकलने की कोशिश करो।"
वह आदमी चिल्लाता है, "भिक्षु जी मैं आपके उपदेश सुनूंगा। पहले मुझे बाहर तो निकाल लें।"
परंतु वह भिक्षु कहता है, "यह भी भगवान ने कहा है कि दूसरो के कामों के बीच में बाधा नहीं आनी चाहिए। मैं तुम्हे बचा लूं और फिर तुम चोरी करो, हत्या कर दो तो जिम्मेदार तुम्हारे साथ साथ मैं भी तो होऊंगा। मैं अपने रास्ते जाता हूं। तुम अपने रास्ते जा रहे हो। तुम्हारा और हमारा रास्ता कहीं मिलता ही नहीं। मेरे स्वयं के कर्मों की धारा है।" यह कहकर भिक्षु आगे बढ़ चला।

कुंए में पड़े आदमी को गुस्सा भी आया परंतु वह लाचार कर भी क्या सकता था। उसे मदद की जरूरत थी। भिक्षु के जाने के बाद ही उसके पीछे कन्फ्यूशियस को मानने वाला एक दूसरा भिक्षु आता है। आदमी अब भी मदद की गुहार लगा रहा था। जिसे उस भिक्षु ने भी सुना, उसने कुंए में झांककर देखा। भिक्षु को देखकर मरता हुआ आदमी फिर चिल्लाया, "मुझे  बचाओ!" 
वह कन्फ्यूशियस वादी कहता है, "मैं तुम्हे बचाऊंगा जरूर, तुम घबराओ मत, कन्फ्यूशियस ने अपनी किताब में लिखा है कि हर कुंए के ऊपर पाट जरूर होना चाहिए। जिस कुंए के ऊपर पाट ना हो, जिस राज्य में बिना पाट के कुंए हों, वह राजा अधर्मी है। तुम घबराओ मत, हम आंदोलन चलाएंगे। हर कुंए पर पाट बनवा देंगे। तुम निश्चिन्त रहो।" 
यह सब सुनकर वह आदमी कहता है, "कैसे निश्चिंत रहूं। जब तक पाट बनेंगे क्या तब तक मैं जीवित रह पाऊंगा, उस समय तक तो मै मर ही जाऊंगा।"
इस पर वह कन्फ्यूशियसवादी कहता है, "सवाल तुम्हारा नहीं है, सवाल पूरे समाज का है। सवाल हर किसी का है, सबका है। मैं सभी की सेवा में लगा हूं। एक एक आदमी की सेवा कहां से करूंगा? तुम निश्चिन्त रहो! मैं अभी जाता हूं मेले में अभी से आंदोलन चलाता हूं।" और यह कहकर वह मेले की ओर आगे बढ़ जाता है। मेले में वह मंच पर जाकर वह लोगो को समझाने लगता है, "हर कुंए का पाट होना चाहिए। हो कुंए पर पाट बनवाता है वो बड़ी सेवा करता है। जिस राज्य में कुंए पर पाट नहीं है, जो राजा कुंए पर पाट नहीं बनवाता वह राजा अधर्मी है।"

समस्या का रोना रोने की बजाय उस पर भरपूर ताकत से वार करें, समस्या के परिणाम बारे में विचार करना आपको विचलित कर सकता है। Motivational story in hindi

इधर उस आदमी की हालत खराब होती जाती है। वह भगवान को याद कर रहा है। उस कन्फ्यूशियसवादी के जाने के बाद कुंए पर एक व्यक्ति और आता है। वह कुंए के पास पहुंचता है, कुंए में नीचे झांकता है। कुंए वाला आदमी उसे देखता है, वह फिर उससे भी चिल्लाकर गुहार लगाता है। वह व्यक्ति अपने झोले से रस्सी निकलता है। उसे कुंए में डालता है, और उस आदमी को कुंए से बाहर निकलता है। 

जिम्मेदारी से अभिप्राय है सकारात्मक पहल, किसी भी स्थिति अथवा परिस्थिति में सुधार के लिए  किया गया रचनात्मक कार्य, न कि दोषारोपण कर, बहाने बनाकर अपना पल्ला झाड़ लेना। 

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