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Motivational quotes about life failure in the first step to success

Motivational quotes about life failure in the first step to success
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गुरुवार, 4 अगस्त 2022

Motivational quotes about life failure in the first step to success 

सफलता का पहला कदम है ईमानदारी। ईमानदारी खुद के प्रति अपने काम के प्रति। जो करना है इसमें यह नहीं देखना है कि करते हुए मुझे कोई देख रहा है अथवा नहीं। क्योंकि जो मायने रखता है उसके लिए आपका प्रत्यक्ष होना अनिवार्य नही, आप छुप कर करते हैं वो भी छिपा नहीं है उससे। जो देखना ही चाहते हैं उनकी स्थिरता कायम नही रहती।

क्या गलती न करने में सफलता है? नही! बल्कि गलती करना पहला चरण है। गलती का दोहराव विफलता है। एक ही गलती को दूसरी बार न करने में सफलता है। 

किसी भी कार्य को करो; तन्मयता और ईमानदारी से। दिखावे अथवा अत्युक्ति से परे। भगवान भी उसी की मदद करता है जो अपना शत प्रतिशत देता है, देने को आतुर रहता है। 

चलिए एक Short story कहते हैं। जिससे आपको अपना शत प्रतिशत देने में Motivation मिले। साथ ही आपको पता चल सके कि ईमानदारी चाहे बेवकूफाना ही क्यों न हो पासा पलट सकती है, सफलता दिला सकती है। 

Story in Hindi for Motivation Success

पुरानी बात है, किसी गांव में एक गरीब ब्राह्मण पत्नी एवं बच्चों के साथ रहता था। पंडित जी की आमदनी न के बराबर थी। क्योंकि उन्हें शास्त्रों का ज्ञान नहीं था। सो उच्च हवन यज्ञ में कोई बुलावा नही आता। बमुश्किल गुजर बसर हो रही थी। ऊपर से पत्नी के ताने।

पंडित जी को शास्त्रों का ज्ञान न होने का अफसोस तो नहीं था, अफसोस था तो यह कि उनके दूसरे साथियों की शास्त्र अनभिज्ञता उनके आड़े नहीं आती, वे धर्म कर्म के कार्य हवन पूजन करके अच्छा खासा कमा खा रहे थे। वे क्या चतुराई करते थे पंडित इससे कोसो दूर थे क्योंकि वे ठहरे ईमानदार व्यक्ति, जितना आता उतना ही बताते। औरों की तरह बढ़चढ़ा कर बताना उन्हें नही आता था। 

पत्नी, पंडित के साथियों के उदाहरण दे देकर अक्सर ताने देती रहती। फलां ब्राह्मण आज राज दरबार में कविता वगैरह सुनकर इतना इनाम लाया; फलां इतना! तुम्हारी तो नाक कटती है राज दरबार में जाने को। वो कौन से ज्ञानी ध्यानी हैं। ये नही कि खुद भी दरबार जाकर जो आता है वो सुना कर कुछ कमा लाए। ये नही कि बच्चे अच्छे से भरपेट खा सके। परंतु महोदय ने तो हमे भूखा मारने की सोच रखी है। अरे मेरा क्या है? मैं तो एक समय भूखी भी रह लूंगी परंतु ये बर्दास्त नही कि बच्चे आधे पेट खाएं। बाप को कोई फिकर ही नही है। 

हालांकि यदा कदा पंडित जी पत्नी के तानों से ताव में आ भी जाते परंतु दूसरे ही पल सोचते कि वो राजदरबार है, वहां जाकर सुनाएंगे क्या? कविता के क तक की समझ है नही। कहीं ऐसी वैसी बात मुंह से निकल गई तो लेने के देने पड़ जाएंगे। अब कम से कम बाहर की हवा तो खा रहे हैं तब तो हवालात की हवा खानी पड़ेगी। ना बाबा ना आधे पेट खाना हवालात की हवा खाने अच्छा है। मैं तो इतने में ही खुश हूं, मन मारकर रह जाते।  

परंतु कहते हैं ना बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी? एक दिन पंडित जी को पत्नी के तानों ने गले तक भर दिया। रात ही को पत्नी को कह दिया कल सुबह  राजदरबार जाऊंगा तैयारी करना। पत्नी बहुत खुश हुई! तैयारी तो क्या करनी थी? बस दो रोटियां सुबह के लिए रख ली रास्ते में पंडित खाकर पानी पी लेंगे। खाली पेट पानी कही किसी बीमारी को न्योता न दे दे। 

सुबह सूर्यनारायण की भी बाट न देखी श्रीमती जी ने। गमछे में रात की दो रोटियां प्याज की दो गंठी के साथ लपेट कर पंडित जी को पकड़ा दी। पंडित जी चले गंतव्य की ओर। जहां पत्नी खुश थी वहीं पंडित जी उससे कई गुना उदास। उन्हें तो बस चिंता थी कि चल तो पड़े, राजदरबार में जाकर सुनाएंगे तो क्या? कविता और कहानी का क तक नही आता। खुद पर खीझ भी जाते गुस्सा भी करते जाते कि आखिर उन्होंने यह फैसला लिया ही क्यों? उधेड़ बुन में रास्ता छोटा करते पंडित जी ने अंतिम फैसला लिया अब ओखली में सर दे ही दिया है तो मूसल की चिंता बेकार है, मूसल को तो सिर फोड़ना ही है। चलो देखा जायेगा, जो होगा।  

मुंह अंधेरे चले थे अब सूर्य नारायण ने धरती पर पग पसारने आरंभ कर दिए थे। पंडित जी कोस से ऊपर चलकर गांव को पीछे छोड़ते हुए राजदरबार की बढ़ रहे थे। थोड़ा और आगे चलकर पंडित जी ने एक पेड़ की शरण ली सुस्ताने के लिए। पेड़ की छांव ने ठंडक तो दी परंतु विचार वही कि सुनाएंगे क्या? तभी उनकी नजर एक चूहे पर पड़ी जो अपना बिल खोद रहा था। पंडित जी ने देखा चूहा बिल में मुंह की ओर घुसता और पिछले पैरों से रेत को पीछे की ओर फेंकता। थोड़ी सी देर बाद ही चूहा मुंह घुमा कर बिल से बाहर आकर इधर उधर देखता। फिर बिल में घुसकर रेत बाहर निकालता और फिर बाहर देखने की क्रिया दोहराता। पंडित जी को चूहे की गतिविधि पसंद आई उन्होंने अपने लिखने की सामग्री निकाली और चूहे पर ही कविता लिखने की कोशिश की। पंडित जी ने लिखा - "खुरम खूरम खोदांती।" उसके बाहर की ओर देखने की प्रक्रिया को कविता रूप दिया "टुकुर टुकुर देखांती।" और जब पंडित जी की ओर जब चूहे की नजर पड़ी तो वह झट भाग गया तो पंडित जी ने लिख डाला, "ताबड़ तोड़ भागंती।"  पूर्णत पंडित ने संपादित कर कागज (हालांकि उस जमाने में ताम्रपत्र होते होंगे परंतु हम कागज़ ही कहेंगे) पर लिखा - 

खुरम खुरम खोदांती

टुकुर टुकुर देखांति

खुरम खुरम खोदांती

टुकुर टुकुर देखांति

ताबड़ तोड़ भागन्ती

टुकुर टुकुर देखांति

ताबड़ तोड़ भागन्ती। 

ये पंक्तियां लिखने के बाद पंडित जी के आत्मविश्वास में कुछ बढ़ोतरी हुई। और अब वो थोड़ा उत्साहित होकर गंतव्य की ओर बढ़ चले।

कुछेक कोस चलने के बाद प्यास ने पग पसारने ही थे। धूप भी खिल चुकी थी भूख भी लगी थी। काफी दिनों बाद जो इतने चले थे पंडित जी। राजदरबार, पंडित जी इसे करम भूमि सोच रहे थे या मरण भूमि! एक आध कोस पर ही था। 

पंडित जी राह में आने वाले कुंए पर बैठ गए। हाथ वगैरह धोकर साथ लाई रोटियां खाने लगे। रोटियां सूखकर लकड़ी हो चुकी थी परंतु भूख के कारण या प्याज के कारण स्वादिष्ट लग रही थी। रोटियों के सूखेपन पर विचार न करके वो सोच वही रहे थे कि आखिर दरबार में सुनाएंगे क्या? क्या मैने जितना लिखा है वो पर्याप्त होगा। तभी एक कौआ उनके इर्द गिर्द मंडराने लगा। पंडित जी ने अपनी रोटी में से एक टुकड़ा उसकी ओर फेंक दिया। कौवे ने रोटी का टुकड़ा उठाया और निगलने की कोशिश की परंतु वह निगल न सका, उसने उसे बाहर निकाल दिया। पंडित जी देख रहे थे तपाक से कह उठे, देखा नही गई न भीतर, ये तो मैं हूं जो इन सूखे टुकड़ों को निगल रहा हूं। देख भाई अपने पास ये ही है, खीर के दर्शन करे तो मुझे ही जमाना हो गया। भाई मै भी मजबूर हूं। 

तभी पंडित जी ने देखा कौवे ने रोटी का टुकडा जमीन से उठाया और उसे पास में  फूटे हुए घड़े में भरे पानी के पास ले गया और उस पर बैठ गया। पहले कौवे ने घड़े पर अपनी चोंच को दोनो और से घिसा फिर टुकड़े समेत चोंच को पानी में डुबाया। यही प्रक्रिया कौवे ने दो तीन बार की और बाद में उसने रोटी के टुकड़े को निगल लिया।  

पंडित जी कौवे की चतुराई के कायल हुए बिना न रह सके। कि कैसे कौवे ने सूखे रोटी के टुकड़े को सही तरीके से पानी में गला गला कर अपना निवाला बना लिया। उनकी बुद्धि ने कहा यह तो नई बात है क्यों न इसे भी कहा जाए दरबार में। उन्होंने फिर एक कागज पर उतारा  - "कभी इधर से घिसता है कभी उधर से घिसता है, घिस घिसकर लगाता है पानी। अरे कल्लू मैंने तेरी बात जानी।।" पंडित जी ने कौवे को कल्लू का नाम दिया। कागजों  पर दो बातें बहुत हैं, कुछ मिलना होगा तो इसी से मिल जायेगा। 

अब पंडित जी थोड़ा आत्मविश्वास के साथ दरबार की ओर रवानगी दे रहे थे। दरबार पहुंच कर पंडित जी भौचंके रह गए। सब कुछ सजा धजा, हर चीज अपनी जगह इतनी व्यवस्थित की लगता कुछेक आदमी तो इसी व्यवस्था में जुटे रहते हैं। दरबार शुरू हुआ हर कोई अपनी अपनी बात कहने लगा तो पंडित जी को लगा उन्होंने अपनी यात्रा बेकार कर दी। जब कोई कुछ सुनाता तो राजदरबार कभी तो ठहाको से कभी तालियों से गूंज उठता। पर पंडित जी समझ न पाते कि आखिर किसी ने क्या सुनाया? और किसी को क्या समझ में आया? क्योंकि पंडित जी के पल्ले कुछ नहीं पड़ रहा था। सो अपनी रचना उन्हे वाहियात लगने लगी। 

जब कभी हमे अपना कार्य कमतर लगता है तो उसका प्रदर्शन न करना ही बेहतर विकल्प नजर आता है। पंडित जी दोपहर ढलने तक अपनी रचना को कांख में ही दबाए रहे। अंत में दरबार समाप्त हो गया। परंतु इत्तिला दी गई कि समय के अभाव में कोई महानुभाव अपनी रचना का प्रदर्शन नही कर पाए वे अपनी रचना नाम पते सहित फलां जगह जमा करवा दें महाराज उनकी रचना बाद में पढ़ लेंगे। पंडित जी ने भी ऐसा करने का निर्णय लिया। क्योंकि घर पर पत्नी को भी जवाब देना है। बाद में पढ़े, पढ़े न पढ़े और यदि राजा को खराब लगेगी तो कचरे में डलवा ही देंगे। कम से कम सबके सामने बेइज्जत तो न होना पड़ेगा। और उन्होंने अपनी रचना राज कार्यालय में जमा करवा दी। 

घर पहुंचकर पत्नी को राजदरबार की भव्यता का बखान कर और अपनी आप बीती बता कर बमुश्किल शांत किया और सोने चले। 

उधर राजमहल में सभी रचनाओं को राजा के शयन कक्ष में भिजवा दिया गया। राजा खाना खाकर शयन कक्ष में पहुंचे। बिस्तर पर बैठे ही थे कि एक जगह कागज़ धरे दिखे। राजा ने सोचा नींद से पहले किसी रचनाकार की कोई कविता ही पढ़ ली जाए। वे कागजों के पुलिंदे के पास आए। उनमें उन्हे दो कागज़ कुछ अजीब से लगे। मतलब मैले से राजा ने कुछ अलग पाने की चाह में उन्हें ही उठा लिया। कागजों को हाथ में लिए महल की खिड़की के पास आकर पढ़ने लगे खुरम खुरम खोदांती। राजा को शब्द समझ में नहीं आए उन्होंने फिर पढ़ा खुर्रम खुर्रम खोदांती, अबकी बार राजा ने शब्दों को खुद को सुनाने हेतु थोड़ा जोर से पढ़ा। 

अब इसे इत्तफाक कहें या कुछ और उसी रात चोरों ने राजा के महल में चोरी की घात लगा रखी। राजा के शयन कक्ष की खिड़की के ठीक नीचे खुदाई कर रहे थे। राजा के शब्द उनके कानों में पड़े तो उनमें से दो लोग इधर उधर देखने लगे। तभी राजा ने पढ़ा टुकुर टुकुर देखांती राजा ने फिर से खुर्रम खुर्रम खोदांती आधे जो देख रहे थे उनके कानों में भी और जो खोद रहे थे उनके भी कान खड़े हो गए और इधर उधर देखने लगे। तभी राजा ने दोहराया टुकुर टुकुर देखांति। इतना सुनते चोर समझ गए कि उन्हें कोई न कोई तो देख रहा है। ठीक ऊपर राजा का ही कमरा है, राजा ही देख रहा, सिपाहियो से कुछ ले देकर काम निकल जाता परंतु राजा नही छोड़ेंगे। और चोर भागने लगे राजा ने फिर पढ़ा ताबड़ तोड़ भागंती। चोर समझ गए आज मरे पीछे मुड़कर एक बार देखा राजा की आवाज फिर आई, "टुकुर टुकुर देखांती" चोर और जोर से भागे राजा फिर बोला, ताबड़ तोड़ भागंती। चोर बुरी तरह भागे। 

इधर शयन कक्ष में राजा ने कुछ पंक्तियां पढ़ी पर पल्ले पड़ी नही। राजा ने कागजों को रख दिया सोने के समय दिमाग पर अधिक जोर देना नही चाहते थे इसलिए सुबह पर छोड़कर सोने लगे। 

इधर चोर लोग जो संख्या चार से पांच होंगे। मुड़ मुड़ कर देखते हुए भाग रहे थे। एक जगह विश्राम किया गुफ्तगू की। राजा ने हमे देख लिया कल सुबह फांसी टूटना पक्का है सबका। क्यों न कुछ ऐसा किया जाए कि राजा को ही चैन की नींद सुलाने का इंतजाम हो। चारों पांचों ने निर्णय लिया कि राजा के नाई कल्लू को लालच या डरा धमका कर राजा का खात्मा करने की योजना बनाई जाए। 

सभी रात को ही कल्लू नाई के पास पहुंच गए। इतनी रात को बिन बुलाए मेहमानों को देख कल्लू की हवा टाइट होनी ही थी। देख भाई कल्लू या तो बहुत सारी धन दौलत लेकर या अपने परिवार से हाथ धोकर तुम्हे जो पसंद हो उसे अपनाकर हमारा काम कर। यह तो पक्का है कि काम तो तूने हमारा करना पड़ेगा, ना करने के बारे में तो सोच ही मत। कल्लू के पूछने पर कि आखिर उसे करना क्या है? तो चोरों ने उसे एक उस्तरा दिया और कहा कि कल इस उस्तरे से राजा की दाढ़ी बनाना। कल्लू के क्यों के जवाब में चोरों ने समझाया कि राजा ने हमे चोरी करते हुए देख लिया है, कल वो हमे सजा दे इससे पहले ही उसका काम तमाम हो जाए तो अच्छा है ना। क्योंकि यह जहर से बुझा उस्तरा है। कल्लू मरता क्या ना करता उसे चोरों की बात माननी पड़ी। 

सुबह कल्लू कांपते हुए राजमहल पहुंचा। कल्लू को देख राजा समझ गए और बैठ गए दाढ़ी बनवाने। कल्लू ने दाढ़ी को गीला किया। तभी राजा ने कहा कि कल्लू जरा वो कागज रखे हैं उसे तो उठाकर दे। कल्लू ने कागज राजा को दिए। इत्तफाक देखिए उसी पंडित जी की कविता राजा पढ़ते हैं, कल्लू अपने उस्तरे की धार पत्थर पर घिसकर पैनी कर रहा है। इधर राजा पढ़ते हैं, "कभी इधर से घिसता है कभी उधर से घिसता है।" यह सुनकर कल्लू के नाम कान खड़े हो जाते हैं, कल्लू राजा की ओर देखता है जो पढ़ने मशगूल हैं, "कभी इधर से घिसता कभी उधर से घिसता है, घिस घिस कर लगाता है पानी।" कल्लू के हाथ पांव फूलने लगते क्योंकि जो वह कार्रवाई कर रहा था उसे ही राजा दोहरा रहे हैं। हालांकि यह दूसरी बात है कि राजा को पंक्तियां समझ में नहीं आ रही थी इसलिए वो बार बार दोहरा रहे हैं। परंतु चोर की दाढ़ी में तिनका होता ही है। राजा, "कभी इधर से घिसता है कभी उधर से घिसता है, घिस घिसकर लगाता है पानी अरे कल्लू मैंने तेरी बात जानी। क्या है ये।" यह सुनकर कल्लू उस्तरे को फेंक राजा के पैर पकड़ लेता है। महाराज मेरी कोई गलती नही है। उन कमीनो ने मेरे परिवार को खत्म करने की धमकी दी है, माई बाप मुझे माफ कर दीजिए और उनसे बचा लीजिए।" 

कल्लू नाई की बात सुनकर राजा अचरज में पड़ जाता है कि आखिर बात क्या है? फिर जब कल्लू सारी बात साफ करता है तो राजा हर प्रसंग की हर कड़ी को समझ जाता है। सिपाहियो को भेजकर चोरों को पकड़ने उनके ठिकाने पर भेजता है और शातिर चोर पकड़े जाते हैं। राजा यह भी अंदाजा लगाता है कि मात्र उस ब्राह्मण कवि की चार पंक्तियों की वजह से राज्य के खतरनाक चोरों का ही खात्मा नही हुआ राजा भी खात्मा होने से भी बच गए। 

Success Shayari in hindi 2 lines  

  • जीवन को जीना है या ढोना है सब आप पर निर्भर है।याद रखे इस कार्य में आपके अलावा किसी दूसरे की गुंजाइश नहीं है। 
  • मैंने किसी से कहा, "यह सांसारिक नियम है कि जो स्वयं जैसा होता है वो सामने वाले को भी वैसा ही समझता है।" वह चिढ़ गया। 
  • उत्साह और भावनाएं एक ही हैं परंतु जहां भावनाओं ने अधिक पकड़ बना ली तो वो बेड़ियां बन सकती हैं जिससे उत्साह के धीमा होने का अंदेशा रहेगा। 
  • जो भी करो दिल से करो, स्वयं को परोसो दिल से, सामने वाले को देखो दिल से। अरे यार आखिर कैसे? वैसे ही जैसे छोटा बच्चा करता है बिना भेदभाव के, बिना लालच के, बिना परिणाम के। 
  • यकीन मानो जब तक आप दिल से कार्य नही करते कार्य सफल नहीं होता। हालांकि यह भी विडंबना है कि शुरुआत दिल से होती है परंतु भटकाव हो ही जाता है! इसे आत्मविश्वास में कमी कहा जायेगा।
  • जैसे हो बिल्कुल सही हो, कहीं कोई कमी नहीं है आपमें। बस दूसरो से अपनी तुलना छोड़ दो। जो हुनर आपमें है वो दूसरे में भी होगा, जरूरी नही। बस आपको उसे ही तो पहचानना है।