Motivational quotes on Motivational Inspirational stories for Self confidence hindi|आत्मविश्वास के लिए प्रेरक प्रेरणादायक कहानी सहित प्रेरक उद्धरण
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Motivational quotes for Self confidence|आत्मविश्वास के लिए प्रेरक उद्धरण
आत्मविश्वास की कथा कहने और हमारे विचारो का हमारे आत्मविश्वास पर क्या फर्क पड़ता है। इस बारे में जानने से पहले यह जान लीजिए कि जिसकी हम तलाश करते हैं वह हमारी अंतरात्मा में पहले से विद्यमान होता है। हर ओर हमे वही दिखाई देता है। उस तलाश की सफलता हेतु अगर हम दृढ़ संकल्प कर पथ अग्रसर करते हैं तो निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी। उस दृढ़ संकल्प पर टिके रहना ही आत्मविश्वास है, हां मैं करुंगा, मुझे करना है।
यदि हम सफलता के प्रति विश्वस्त होकर शुरुआत करते हैं, तो यकीन मानिए हमें सफलता ही प्राप्त होगी। किंतु विश्वास की कमी हमें सफलता से परे कर देगी।
"हम जो देखते हैं वह मुख्य रूप से उस चीज पर निर्भर करता है जो हम खोजते हैं।"
एक प्राचीन और प्रचलित कहानी है। कहानी है तो काल्पनिक परंतु दर्शाती 'यथार्थ' है। कहानी दर्शाती है कि हमारा बाहरी जगत का स्पष्ट रूप से दिखाई देने वाला स्वरूप वह वास्तव में हमारे अंदर सूक्ष्म रूप में पहले से विद्यमान रहता है। उसी सूक्ष्म रूप के आधार पर ही हम उसे स्पष्टत: स्थूल रूप प्रदान करते हैं।
कहानी कुछ इस प्रकार है-
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(प्रेरक एवं प्रेरणादायक कहानी):-
एक बार एक व्यक्ति पुराणों में वर्णित कल्पवृक्ष की खोज में निकल पड़ा। उस व्यक्ति को बताया गया था कि कल्पवृक्ष के नीचे खड़े होने पर मन में उत्पन्न होने वाली इच्छा तुरंत पूर्ण हो जाती है। चलते चलते घूमते घूमते वह एक जंगल में पहुंचा। थकान और भूख प्यास के कारण उसका बुरा हाल हो रहा था।
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Best Golden and powerful thoughts
सर्वश्रेष्ठ सुनहरे और शक्तिशाली विचार
उसने एक छायादार और हरे-भरे वृक्ष की शरण ली और उसके नीचे बैठकर विश्राम करने लगा। विश्राम कर तो रहा था परंतु भूख और प्यास उसे परेशान कर रही थी। अचानक ही उसके मन में आया कि- 'काश इस सौंदर्य पूर्ण व सुहावने वातावरण में भरपेट खाना वह प्यास बुझाने के लिए पानी मिल जाता।' उसके इतना सोचते ही खाने से भरी बड़ी सी थाली और पानी से भरी गागर उसके समक्ष प्रस्तुत हो गई।
यह सब देखकर वह अचंभित भी हुआ और फिर थोड़ा घबरा भी गया। परंतु भूखा और प्यासा होने के कारण उसने खाना शुरु कर दिया। स्वादिष्ट और तरह-तरह के व्यंजन उसके सामने प्रस्तुत थे। भरपेट भोजन करने के बाद उसने गागर से ठंडा पानी पीया और अपनी प्यास बुझाई। अपनी क्षुधा अर्थात भूख और प्यास मिटाने के बाद वह थोड़ा आश्वस्त हुआ। खाने के बाद होने वाले एक प्रकार के संतोष से वह निढ़ाल सा होकर पेड़ के तने से पीठ लगाकर लेट सा गया।
प्रेरक सकारात्मक विचार बनाम नकारात्मक विचार
तभी उसकी नजर अपने कपड़ों पर पड़ी। अपने कटे और फटे कपड़ों को देखकर उसे बहुत ग्लानि हुई। उसने एक बार फिर सोचा- 'काश मेरे कपड़े भी राजसी होते अर्थात राजाओं के वस्त्रों की भांति बहुमूल्य एवं शानदार होते।' सोचने की देर थी कि होने की तुरंत ही उसके कपड़े राजसी वस्त्रों में परिवर्तित हो गए।
अपने वस्त्रों को देखकर उसमें एक अलग ही ऊर्जा का संचार होने लगा। ऊर्जा का संचार तो खाना खाने के पश्चात ही हो गया था। परंतु वस्त्रों की भव्यता और सुंदरता देखकर वह और अधिक खुश हो गया और खड़ा होकर अपने वस्त्रों को ऊपर से नीचे तक निहारने लगा। परंतु...
हाय रे मानवीय मानसिकता अत्यधिक खुशी मिलने पर एक प्रकार का भय जो हमारे मन में समा जाता है, उसके मन में भी समा गया और वह एकदम से डर गया। डरने के बाद ही उसने सोचा- "हे भगवान कहीं इस जंगल में या कहीं इस पेड़ पर कोई राक्षस तो नहीं है और वह राक्षस कहीं मुझे खा जाए।" उसके इतना मन में विचार करते ही, उस वृक्ष से एक राक्षस उतरा, और उस व्यक्ति को खा गया।
कहानी भले ही काल्पनिक है किंतु इससे स्पष्ट होता है कि हमारी अंतरात्मा ही हमारी सबसे बड़ी मित्र है और सबसे बड़ी शत्रु भी यही है।
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इसीलिए कहा गया भी है:-
हार कर अगर मन से चले तो तुम हार जाओगे और मन में जीत को ठानकर चलोगे तो तुम जीत जाओगे।
सांसारिक सत्य ये भी है कि तुम्हें तबतक कोई नहीं हरा सकता जब तक स्वयं से ना हार जाओगे।
किसी भी कार्य की सफलता में या आम जनजीवन की व्यस्तता में हमारी अंतरात्मा हमारे आत्मशक्ति हमारे 'आत्मविश्वास' का महत्वपूर्ण योगदान होता है।
कमजोर आत्म शक्ति व आत्मविश्वास से उत्साहीनता जागृत होने लगती है। आत्मविश्वास को मजबूत करने हेतु हमें किसी बाहरी शक्ति की कम, अपितु स्वयं की अधिक जरूरत है। आत्मविश्वास से हम बड़े-बड़े काम आसानी से कर सकते हैं और इसके बगैर छोटा सा काम भी पहाड़ सामान लगता है।
आत्मविश्वास की कमी हम अपनी सूज भुज और ध्यान लगाकर कुछ कदम उठाएं तो हम अपने आत्मविश्वास को विकसित कर सकते हैं ज्ञात रहे यह सिर्फ हम ही कर सकते हैं कोई दूसरा नहीं।
हमें विश्वास बनाने के लिए कुछ प्रेरक और प्रेरणादायी कदम उठाने की आवश्यकता है।
We need to take some Motivational and Inspiring steps to build trust.
पहला कदम:-
सर्वप्रथम हमें अपने आत्मविश्वास के ऊपर छाए बादलों की परत को हटाना होगा। बादल! कौन से बादल? वे बादल जो सूर्य के प्रकाश के सम्मुख भी आ जाते हैं, और अंधेरे का एहसास करा देते हैं। वैसे ही आपके अपने बादल। जिन्हें हम 'आलस्य', 'प्रमाद' 'अज्ञान' और 'अहंकार' कह सकते हैं।
जिन्होंने हमारी 'आत्मशक्ति' हमारे 'आत्मविश्वास' (Self-confidence) पर अर्धपारदर्शी परत चढ़ा रखी है। ज्ञातव्य रहे ये सिर्फ अंधेरे का अहसास भर करा सकते हैं, संपूर्णत् अंधेरा नही। थोड़ी सी सावधानी से और मेहनत भरी कोशिश से हम इन्हें जड़-मूल सहित उखाड़ फेंक सकते हैं।
Leaving negativity towards positive thinking
सकारात्मक सोच के प्रति नकारात्मकता छोड़ना।
आइए इन्हें विवरण सहित देखते हैं:-
आलस्य:- आलस्य की अधिक व्याख्या करने की शायद जरूरत नहीं है, परंतु आलस्य को, कर कौन रहा है! हमें यह देखना है।
प्रमाद:- प्रमाद को उन्माद, मद या नशा भी कहते हैं। यह जरूरी नहीं है कि किसी नशीली वस्तु का सेवन ही नशा है। किसी एक वस्तु के प्रति आसक्ति भी एक प्रकार का नशा ही होता है। क्योंकि उसके पीछे लगे रहने के उपरांत हम अपने कर्तव्य परायणता भूल जाते हैं। वह वस्तु क्या है? हमें उसे त्यागना होगा।
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प्रेरणा दायक कहानी व प्रेरक विचार
अंधकार और अंधविश्वास आत्मविश्वास की बजाय डराते अधिक हैं:-
एक बार अंधकार भगवान के सम्मुख जाकर विनती करने लगा कि "हे भगवान मुझे बताइए प्रकाश के कारण मेरा अस्तित्व खतरे में है। मैं जहां भी उपस्थित होने की चेष्टा करता हूं, तो वह मेरे सम्मुख आकर मुझे नदारद कर देता है।" भगवान ने प्रकाश के पास संदेश भेजा।
संदेश पाकर जब प्रकाश भगवान के सम्मुख प्रस्तुत हुआ, तो भगवान ने प्रकाश को अंधकार की शिकायत के बारे में बताया। इस पर प्रकाश बोला "हे भगवान मैंने जानबूझकर किसी को दुख पहुंचाने का कार्य कभी नहीं किया। मैं स्वयं आकर इस शिकायतकर्ता से मिलना चाहूंगा। मैं यह देखना चाहता हूं कि वह अंधकार कौन है, जिसे मैं नुकसान पहुंचा रहा हूं। अगर ऐसा है तो अनजाने में हुई भूल की माफी स्वयं मांगना चाहूंगा।
कहते हैं भगवान और प्रकाश सदियों से अंधकार की प्रतीक्षा कर रहे हैं, परंतु आज तक वह उपस्थित नहीं हो सका है।
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प्रेरक उद्धरण अपनी क्षमताओं को पहचानने के लिए वैसे ही हमें भी अपने अज्ञान रूपी अंधकार को ज्ञान रूपी प्रकाश में बदलना होगा ताकि अज्ञान रूपी अंधकार का अस्तित्व उपस्थित ही ना हो सके। यह बात अच्छी प्रकार जान लीजिए कि ज्ञान, ज्ञान की ओर, और अज्ञान, अज्ञान की ओर ही आकर्षित होता है। पसंद आपकी है कि आप अज्ञान रूपी चादर को ज्ञान के प्रकाश से कैसे धोते हैं! या नहीं।
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नकारात्मक से सकारात्मक सोच के लिए प्रेरक उद्धरण
आत्मविश्वास का दुश्मन अंहकार:-
अहंकार को पर्याय रूपी शब्द मिले तो इसे 'अकड़' भी कह सकते हैं। इस पर्याय शब्द से शायद असंतुष्ट होकर, आप यह कहेंगे कि जहां आत्मविश्वास ही नहीं है, वहां 'अहंकार' या 'अकड़' का अस्तित्व कैसे हो सकता है। ऐसा सोचना निहायत ही गलत होगा। क्योंकि अहंकार भी हमारे आत्मविश्वास को कमजोर करने में अहम् और महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जैसे यह काम छोटा है, यह काम मेरे लायक नहीं है इसमें अंहकार नहीं है क्या? यहां आपको क्या दिखा आत्मविश्वास की कमी या अंहकार की अधिकता। कहीं मैं हार ना जाऊं, कहीं मेरी बेइज्जती ना हो जाए, कहीं लोग मुझ पर हंसें ना, मेरा उपहास उड़ाएं। यह अहंकार नहीं तो और क्या है इसे भी हमें त्यागना होगा याद रखिए अहंकार और आत्मसम्मान दो अलग-अलग पहलू हैं, अंहकार के साथ आत्मसम्मान को ना जोड़ें।
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अपनी क्षमताओं को पहचानने और विकसित करने के लिए प्रेरक कदम
दुसरा कदम:- स्वयं को और स्वयं की क्षमताओं को पहचान कर विकसित करें।अब हमारा दूसरा कदम होगा अपने आप को पहचानने का अपने आप को पहचानिए अपने आप को अच्छा बनाने की कोशिश करें, ना की किसी के जैसा बनने की चाह रखें। किसी से भी अपना मूल्यांकन न करें, या किसी का भी मूल्यांकन स्वयं के साथ न करें। मुख्य समस्या तभी आती है जब हम जिससे प्रेरित (Inspire) होते हैं तो हम स्वयं को उसके जैसा ही देखने लगते हैं, या अपने आपको उसके जैसा बनाने की की कोशिश में जुट जाते हैं। उनसे सिर्फ प्रेरणा लेकर उनकी बातों को अपने नजरिए में अपनी हरकतों में अपनी सोच में सिर्फ शामिल करें। उसके जैसा संपूर्ण (Completely) बनने के चक्कर में स्वयं को भूलना गलत होगा। कभी भी अपनी तुलना दूसरों से ना करें जो आपके पास है वह किसी दूसरे के पास नहीं। यह जरूरी नहीं कि जो आपके पास है वह दूसरों के पास हो, या जो दूसरों के पास है वह आपके पास भी हो हर इंसान की अपनी अपनी दक्षता और काबिलियत होती है इस बात का ध्यान रखें।
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प्रेरक उद्धरण अपनी क्षमताओं को पहचानने के लिए
स्वयं की शक्तियों को पहचाने शक्तियां! कैसी शक्तियां? चलिए शक्तियां न कहकर उन्हें क्षमताएं कह लें! क्षमताएं असंख्य हैं आप में; सिर्फ उन्हें पहचानने की जरूरत है।
जब हम इन बादलों की परत को हटाएंगे तो स्वयं ही हमारी क्षमताएं उजागर होने लगेंगी। तभी हमें पता चल पाएगा कि हम क्या कर सकते हैं और क्या नहीं? जब भी कार्य को हाथ में लेंगे और गहन चिंतन करने के पश्चात स्वयं के अंतर्मन को टटोलेंगे तो वह हमें बता देगा कि हम कहां तक सक्षम हैं।
यदि हमें कोई कमजोरी नजर आएगी या लगेगा कि कोई भाग हमारे ज्ञान से अछूता है, तो किसी भी कुशल व्यक्ति से संपर्क साध कर उसे संपूर्ण कर लेंगे। और तब देखिएगा कि हम स्वयं अनुभव करेंगे कि हम एक सक्षम व्यक्ति हैं, और सफलतापूर्वक अपने कार्य को अंजाम दे सकते हैं। पूर्णता की यह अनुभूति ही हमारा 'आत्मविश्वास' है। स्मरण रहे ज्ञान ही 'आत्मविश्वास' (Self-confidence) का मूल आधार है।
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Selfconfidence को बढ़ाने के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रेरक उद्धरण और शक्तिशाली विचार
आत्म विश्वास का तीसरा भाग:- "हमारा धैर्य" (Patience)।
हमारा तीसरा कदम है हमारा 'धैर्य' विपरीत परिस्थितियों में भी स्वयं को संयत रखना। अपने चित्त को स्थिर रखना। हड़बड़ाहट और घबराहट में कोई निर्णय न लेकर उन परिस्थितियों पर विजय प्राप्त कर लेना ही 'धैर्य' (Patience) है। मन की चंचलता इसमें बड़ी बाधा है।
Motivational quotes and Short Stories प्रेरक उद्धरण व कहानी। Positive Thoughts vs Nagative thoughts
इसके लिए हम आपको एक कहानी और सुनाते हैं। एक बार भगवान बुद्ध कहीं जा रहे थे। जब वे एक जंगल से गुजर रहे थे, तो उन्होंने जंगल में एक स्थान पर छोटे-छोटे कई गड्ढे खुदे देखे।
उनके मन में इसका कारण जानने की जिज्ञासा हुई। उन्होंने एक स्थानीय व्यक्ति से इस बारे में पूछा कि "यह गड्ढे किसने और किस मकसद से खोदे हैं।" तो उस वृद्ध व्यक्ति ने बताया कि "एक राहगीर ने पानी की तलाश में गड्ढा खोदने का प्रयास किया। कुछ गहरा खोदने के पश्चात जब उसे पानी नहीं मिला। तो उसने दूसरा गड्ढा खोदना शुरू कर दिया, और उसमें भी पानी नहीं मिला तो वह फिर और गड्ढे खोदता गया परंतु उसे पानी नहीं मिला।"
इस पर भगवान बुद्ध बोले "उस व्यक्ति में धैर्य का अभाव था। अगर वह पहले गड्ढे को ही धैर्य पूर्वक और अधिक गहरा खोदता तो उसे पानी जरूर मिल जाता।" स्मरण रहे धैर्य और परिश्रम का परिणाम हमेशा सफलता देने वाला होता है।
और इस छोटी-सी प्रेरक उद्धरण व कहानी के साथ हम हम इस लेख को समाप्त करते हैं, बातें तो और भी हैं जो बाकी के लेखों में जारी रहेंगी। इन तीन कदम को स्वयं के प्रति ईमानदारी से प्रयोग में लायें। उम्मीद है आपके 'आत्मविश्वास' (Self confidence) में वृद्धि जरूर होती है।
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