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गुरुवार, 13 फ़रवरी 2020

Good habits for students in hindi विधार्थियों के लिए अच्छी आदतें हिन्दी में

Good habits for students in hindi
विधार्थियों के लिए अच्छी आदतें हिन्दी में 

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Good habits for students in hindi विधार्थियों के लिए अच्छी आदतें हिन्दी में     

आदतें मतलब स्वभाव, हमारे द्वारा किए गए सही या गलत कार्य। आदतें हमारे स्वभाव की हमारे व्यक्तित्व की पहचान होती है। आदतों से हम या कोई दूसरा हमारी या हम दूसरों की स्वभाव के बारे में, उसके व्यक्तित्व के बारे में जान सकते हैं। आदतें जिंदगी के साथ भी और जिंदगी के बाद भी। आदतों के बारे में आज हम कुछ विश्लेषण करेंगे। अच्छी आदतें और बुरी आदतें कब वो अच्छी होती हैं और कब वो बुरी होती हैं या होती ही हैं या हो जाती हैं। 
विद्यार्थी जीवन में अच्छी आदतों की भी एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है विद्यार्थियों को हमेशा अच्छी आदतें अपनानी चाहिएंं इस बारे में परीक्षण और विश्लेषण करते हैं।

Do not consider responsibility a burden
जिम्मेदारी को बोझ न समझें

पुराने जमाने की बात है। एक राजा था और उसका एक लड़का था। लड़के में कुछ गलत आदतें थी। गलत इसलिए कहीं जाएंगी, क्योंकि राजा स्वयं भी अपने सुपुत्र की आदतों से परेशान रहते थे। राजा ने अपने बेटे को समझाने की भरसक कोशिश की लेकिन वे अपने पुत्र को समझाने में नाकामयाब रहे राजा इसी उधेड़बुन में रहते कि कल को यह राजा बनेगा तो इसकी गलत आदतों से राज्य का तो पतन ही समझो। 


इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि हर इंसान पहले राजकुमार होता है और बाद में उसे राजा बनना ही पड़ता है, अपनी जिम्मेदारियां उठाने के लिए अपनी जिम्मेदारियों का राजा। हर शख्स अपने आप में राजा है दायरा चाहे छोटा ही क्यों ना हो।
अपने आत्ममिश्वास को बढ़ाने व मजबूत करने हेतु सुझाव

राजा ने कुछ विचार किया और अपने पुत्र को एक महात्मा जी के पास ले गए। साधु महात्मा के पास पहुंचकर राजा ने अपने पुत्र की गलत आदतों के बारे में उन्हें अवगत कराया। साधु महाराज राजा को सांत्वना देते हुए बोले "महाराज आप चिंता ना करें राजकुमार की गलत आदतों से उनका पीछा छुड़ाने की मैं भरसक कोशिश करूंगा आप निश्चिंत रहिए और राजकुमार को कुछ दिन के लिए हमारे यहां छोड़ जाईये। 

राजकुमार को उनके सानिध्य में छोड़कर राजा ने अपने राज्य की ओर प्रस्थान किया। राजकुमार अब साधु महाराज के साथ रहने लगा। साधु के सामने तो वह सलीके से रहता, परंतु पीछे से फिर वही गफलत करता। महात्मा जी इस बात से अनभिज्ञ नहीं थे। और उन्हें यह भी अहसास था कि राजकुमार में वैसे तो अच्छे गुण भी हैं, परंतु अपने मनोरंजन के लिए की गई गलत हरकतों से राजकुमार अपने गुणों को दबा रहे हैं। वो स्वयं अपने ही हाथों से अपना नुकसान कर रहे हैं। अगर वक्त रहते कुछ नहीं किया गया तो गलत के पीछे ही रह जाएंगे। होता भी है, सही समय पर अगर टोका न जाये तो सही व्यक्ति का अंजाम भी निराशाजनक हो सकता है।

गलत आदत पौधे की तरह हों तभी छोड़ दो पेड़ होने पर उखाड़ नही पाओगे

एक सुबह साधु और राजकुमार अपने आश्रम के पास टहल रहे थे आश्रम के आसपास कुछ बेकार के पौधे उगे हुए थे। साधु महाराज ने राजकुमार से उन पौधों को उखाड़ने के लिए कहा महात्मा जी की आज्ञा पाकर राजकुमार उन पौधों को उखाड़ने लगे। साधु उनके साथ साथ चल रहे थे। महात्मा जी जिस भी पौधे को उखाड़ने के लिए इशारा करते राजकुमार उसे उखाड़ कर फेंक देते। साधु महाराज उनके पीछे पीछे चल कर उसे बताते जा रहे थे और राजकुमार आगे आगे चलकर पौधे उखाड़ रहे थे।

चलते चलते महात्मा जी और राजकुमार एक बड़े से पेड़ के सामने आ गए महात्मा जी ने कहा, "पुत्र इसे भी उखाड़ फेंको।" राजकुमार ने पहले साधु की ओर और फिर पेड़ की ओर देखा फिर दोबारा महात्मा जी की और देखा।

महात्मा जी इत्मीनान से फिर बोले- "हां! हां! पुत्र इसे भी उखाड़ कर फेंक दो।"
राजकुमार ने आश्चर्य से कहा- "गुरुदेव यह कैसे उखड़ सकता है।"
महात्मा जी, "वैसे ही जैसे तुमनें ये पौधे उखाड़ फेंके।"
राजकुमार, " गुरुदेव  वह तो छोटे थे और कमजोर थे। मजबूत नहीं थे इसकी तरह।"
महात्मा जी, "यह मजबूत है? कैसे? लेकिन गड़ा तो जमीन में ही है, वैसे ही जैसे यह पौधे गड़े थे।
राजकुमार, "परंतु गुरुदेव इन पौधों की उम्र कम थी। और जमीन में पूरी तरह जड़ नहीं जमा पाए थे। इस पेड़ की उम्र तो अधिक है इसने अपनी जड़ें जमीन में अधिक गहराई तक जमा ली है, इसलिए इसे नहीं उखाड़ा जा सकता, गुरुदेव यह काफी मजबूत हो चुका है"
महात्माजी यही तो! यही तो बात है, पुत्र तुम इस पेड़ और इन पौधों की संपूर्ण जानकारी रखते हो अपनी नहीं।
राजकुमार, "मैं कुछ समझा नहीं गुरुदेव?"

महात्मा जी, "समझने की बात सिर्फ यह है कि यह जो पौधे हैं इन्हें तुम अपनी गलत आदतें समझो जिन्हें तुम उखाड़कर अभी फेंक सकते हो। इन्हें अपने अंदर से दूर कर सकते हो। अभी तो यह तुम्हारी गुलाम हैं जैसे-जैसे उम्र बढ़ेगी यह गहराई में पहुंचकर तुम्हारे अंदर अपनी जड़े मजबूत कर लेंगी, फिर तुम चाह कर भी इन्हें नहीं छोड़ पाओगे। 

और फिर तुम अपनी ही आदतों के गुलाम बन जाओगे। जैसे तुम इस पेड़ को नहीं उखाड़ सकते वैसे ही अपनी गलत आदतों को छोड़ नहीं पाओगे। इसलिए अपनी गलत आदतों, जिनसे माता-पिता या किसी और को ठेस पहुंचती हो उन आदतों को छोड़कर सरल स्वभाविक सुंदर जिनसे  दूसरों का अपने आप का भला हो उन्हें अपनाओ।

 राजकुमार ध्यान से महात्मा जी की बातें सुन रहे थे अपनी लज्जा और खुशी मिश्रित भाव से राजकुमार ने कहा, "मैं समझ गया गुरुदेव।  आगे से आपको या किसी और को शिकायत का मौका नहीं दूं, मैं पूरी तन्मयता से कोशिश करूंगा।"

आदतें सही कौन सी है? और बुरी कौन सी है? उलझन है भाई
Which habits are good?  And which one is worse?  Confused brother 

आप स्वयं फैसला कीजिए, कैसे? चलिए कुछ और विश्लेषण करते हैं।  मैं आपको यह नहीं बताऊंगा कि सुबह जल्दी उठो नहा धोकर फ्रेश रहो। या अच्छे से पढ़ाई करो और सिर्फ पढ़ाई करो। यह अच्छी आदत है। टीवी कम देखो मोबाइल से दूर रहो। वगैरा-वगैरा क्योंकि यह सब बातें तो आपको घर में ही मिल जायेंगी। 
हमारे माता पिता हमारे बड़े बुजुर्ग ये सब तो बताते ही रहते हैं, जो बिल्कुल ठीक कहते हैं। कहते वो भी सही हैं। वही बात दोहरा कर बोर नहीं करना चाहता।
कहने का मतलब यह है कि जो बातें आपके अंदर हैं उसे कोई दूसरा बताता है तो खीझ होने लगती है। क्या आपको नहीं पता? अधिक टीवी देखना कहां तक सही है? मोबाइल में ही लगे रहना कहां तक सही है? कम पढ़ना, पढ़ाई में ध्यान न देना कहां तक सही? क्या आपको पता नहीं है, इन बातों का? मैं एक सौ एक प्रतिशत कहता हूं आपको इन सब बातों का पता है। कोई बार-बार यही बात अगर आपको रिपीट करता है तो आपको खीझ ही होगी।

चलिए कुछ और नया जानने की कोशिश करते हैं। आदतें हम स्वयं बनाते हैं चाहे वह सही हो या गलत। यह हम पर निर्भर करता है। किसी को वह गलत लगती हैं। लेकिन हमें सही लगती है। किसी को सही नही लगती हैं।

लेकिन ऊपर वाले ने तो सिर्फ सृष्टि और जीव ही बनाए और वह सारी सुविधाएं दी हैं जिनकी जितनी अधिक हमें जरूरत होती है हमें वह उतनी ही आसानी से मिल जाती हैं। हमारा बिगाड़ खाता ही हमारी आदतें करती है, या बेवजह की जरूरतें। अगर अधिक सुविधाओं को पाना है, तो अच्छी आदतों के साथ मेहनत और हिम्मत हमें ही करनी होगी।

चलिये देख लेते हैं भगवान की दी हुई आदतें जिन्हें पूरा करने के लिए भगवान हमें क्या देते हैं और हमसे क्या कुछ करवाते हैं

सबसे जरूरी पहली आदत यह Good habit Or Bad habit है आप बताएं।

सबसे अधिक हमें किस चीज की जरूरत होती है या जीव को जीने के लिए सबसे पहले क्या चाहिए ?सोचिये! सोचिए! हां! हां! ठीक पहचाना आपने हवा!  जी हाँ हवा चाहिए हमें सबसे पहले जीवन के लिए। यानी ऑक्सीजन। हमारी पहली आदत है सांस लेने की उसके लिए हमें ऑक्सीजन चाहिए और वह हमें कितनी मुश्किल से मिलता है, यह आप स्वयं समझ सकते हैं। अगर सर्दी में रजाई के अंदर मुहं देकर सोते हैं तो भी हवा वहां पहुंचकर हमारा श्वास लेने का उपक्रम करवाती है।

दूसरी चीज या आदत है प्यास Good habit Or Bad habit

प्यास लगने की आदत मे हमें पानी की जरूरत होती है। प्यास लगने के बाद हम पानी के लिये कितनी देर तक रह सकते हैं। घंटा दो घंटा या..... बस इससे अधिक नहीं। तो पानी हमें थोड़ा कष्ट उठाकर मिलता है। कुंए से पीना है तो  हमें कुछ कदम चलना पड़ेगा।नदी से पीना है तो नदी के पास जाना पड़ेगा। ये बातें आज की नही हैं, कि मिनरल वाटर पीना है, बिस्तर से उठकर फ्रिज से बॉटल निकालना होगा। धरती से निकल कर हमारे फ्रिज तक कैसे पहुंचा है ये पानी? कुएँ कैसे खोदें जाते थे नदियों की धारा को मोड़ कर कैसे पहुंचता है पानी ये अलग बात है। इन बातों में न उलझकर हम अपने टॉपिक पर ही रहते हैं।

 तीसरा है भुख लगने की आदत Good or Bad habit 

भुख लगने पर हमें खाना खाने की जरूरत होती है।  सोचिए इसके बगैर कितने समय के लिए रह सकते हैं। एक दिन दो दिन एक हफ्ता या... बस शायद ये भी कुछ ज्यादा हो गया। तो हमें इसके लिए पानी से अधिक कष्ट करना होगा। तब जाकर हमें भोजन मिलेगा, क्यों सही है ना?

इन सबके अलावा भी तो और बहुत कार्य है जिन्हें हम करते हैं। मतलब यह है कि हमें जितनी अधिक सुविधा चाहिए, उसके लिए हमें उतनी ही अधिक मेहनत करनी पड़ेगी वह भी हमें! और सिर्फ हमें! हर कोई मुंह में चांदी की चम्मच लेकर तो पैदा नहीं होता है। है ना! अब आप कहेंगे कि यह सब तो हमारी जरूरतें है। इनमें आदत कहां घुसेड़ रहे हो। तो मतलब यह है कि हमें अधिक सुविधा संपन्न होना है तो अच्छी आदतों को अपनाकर आगे बढ़ा जा सकता है और मनचाहा फल प्राप्त किया जा सकता है।

10 आदतें अच्छी या बूरी पसंद अपनी अपनी:-
10 Habits good or bad choice your own: -

  1. अधिक नींद या अधिक सोने की आदत (More sleep or more sleeping habits)
  2. साफ-सुथरा रहने या साफ सफाई की आदत (Habit of keeping clean or with cleanliness)
  3. खाने-पीने की आदत (Food and drink habits: -
  4. ईमानदारी की आदत (Habit of honesty)
  5. काम मे मन लगाने की आदत (Habit of mind)
  6. सही तरीक़े से अपनी ऊर्जा को खर्च करने की आदत (Used to spend your energy in the right way)
  7. आलस्य करने की या कार्य को टालने की आदत (Habit of being lazy or avoiding work)
  8. किसी से उम्मीद करना या किसी की उम्मीद पर खरा उतरना (Expecting someone or living up to someone's expectation)
  9. विश्वास बनाने की आदत (Habit of building trust)
  10. अपनी गुणवत्ता को कायम रखने की आदत (Habit of maintaining your quality)

मेरे हिसाब से यह कुछ जरूरी या गैर जरूरी अच्छी या बुरी कुछ आदतें हैं। इनके अलावा भी और भी हो सकती है। अगर आप स्वयं विश्लेषण करेंगे तो। कुल मिलाकर इन पर ध्यान देते हुए इन्हें विस्तारपूर्वक देखते हैं। हममें क्या हैं, और क्या हो सकती हैं, और क्या होनी चाहिये।

1. अधिक नींद या अधिक सोने की आदत (More sleep or more sleeping habits): 

नींद भी हमारे लिए बहुत जरूरी है। सोने की आदत को हम लत में तब बदल देते हैं, जब हमें कोई जगाता है वह भी एक आवाज मे उठने के बजाय झिंझोड़ने पर। कहां तक सही है? हर सुबह जिस काम के लिए हम रोजाना जाते हैं। हर रोज की दिनचर्या में शामिल है यह बात, लेकिन हम अपने आप उठने की बजाय किसी के उठाने पर उठते हैं। यह सही है क्या?

आपने नोट किया होगा कि छुट्टी के दिन या हमें कहीं जाना हो, तफरी के लिए, उस दिन हम सुबह तड़के ही उठ जाते हैं। क्यों? क्योंकि हम रात को ही अपने दिलो-दिमाग को इस बात की सूचना दे देते हैं कि भाई साहब सुबह जल्दी जगा देना। लेकिन रोज के रोज यह सुंदर कार्य क्यों नहीं करते? करते तो हैं नींद भी खुल जाती है लेकिन सोचते हैं, "उठना तो है ही और 10 मिनट ऊंग लेते हैंं।" है ना? अधिक सोने की आदत सही है? क्या अधिक सोने की आदत भगवान ने भेंट की है?

आप सब ने कुत्ते को तो देखा ही होगा और आपने यह भी देखा होगा कि कुत्ता कितनी गहरी नींद में सोता है। लेकिन एक हल्के से खड़के से वह जाग जाता है। हमें भी वैसी ही नींद में सोना चाहिए। चाणक्य ने कहा है कुत्ते की सी गहरी नींद में सोओ लेकिन हल्के से खटके से जाग जाओ।

2. साफ-सुथरा रहने या साफ सफाई की आदत (Habit of keeping clean or with cleanliness):-

किसी शादी समारोह में जाना हो तो एक हफ्ते पहले ही तैयारी शुरू कौन से कपड़े कब पहनने हैं? ले जाने कौन से हैं? जूते दो जोड़ी या? पता नहीं किस किस चीज की कितनी बार छानबीन करते हैं? दो दो बार जूतों को पॉलिश करना। चमक नहीं आई। धुलने वाले  जूते हैं तो फिर से धोना। या कह भर देना कि "जूते साफ नहीं धूले फिर से धोना है।"सामने से अगर जवाब मिले कि "मैंने तो धो दिए, जैसे धुले और चमकाने हैं तो खुद धो लो।" तो खुद ही अपनी कमर कस लेना और जूतों पर टूट पड़ना। कितने अधिक एक्टिव हो जाते हैं हम।
अब आप रोजमर्रा की जिंदगी में, खाने का आमंत्रण मिले तब आवाज आती है, "हाथ मुंह धो ले खाना तैयार है।" हम सोचते हैं, "अरे यार धो रखे हैं क्या लगा है हाथों में?"  पूछने पर हाथ धो लिए तो झूठ का सहारा लेना। क्यों? आखिर क्यों? क्यों नहीं हम हमेशा की तरह ही एक समारोह की तरह एक्टिव रहते, क्यों? साफ सफाई के मामले में गफलत महंगी पड़ सकती है। साफ-सफाई का खास ख्याल रखना चाहिए। कम से कम मेरे हिसाब से तो इंसान की खूबसूरती उसके चेहरे से नहीं बल्कि उसके पैरों से होती है। चेहरे को धो कर उसे चुपड लेना बालों में कंघी मार लेना, लेकिन पैरोंं पर जमी मैल को नजरअंदाज करना कहां तक जायज है। साफ न रहना किसने कहा है? हम स्वयं ही अपने आप को मैला रखने की आदत बनाते हैं। भगवान ने तो हमें अपने आप को साफ रखने के लिए पानी मुहैया करा दिया है, उसे प्रयोग में कैसे लाना है यह तो विवेक इंसान के पास पहले से मौजूद है।

3. खाने-पीने की आदत (Food and drink habits): -

खाएंगे नहीं तो चलेंगे कैसे? खाना पीना भी हमारे लिए अत्यधिक जरूरी है। लेकिन खाने के प्रति नाक भौं सिकोड़ना यह नहीं खाना, वह नहीं खाना, वह खाना है, वगैरह वगैरह। क्या माता-पिता कभी भी अपने बच्चों के लिए कोई गलत चीज परोस सकते हैं? नहीं। सादा खाओ, पौष्टिक खाओ, दबा कर खाओ, परन्तु ये हमेशा याद रखो, अति किसी की भी बुरी होती है। खाने में मीन मेख निकालना क्या सही है? बताइएगा जरूर। भगवान ने खाने के लिए कहा है। क्या खाना चाहिए इंसान को यह विवेक भी दिया है। अब हम किस खाने के पीछे भागते हैं और क्या खाते हैं। यह तो हम पर ही निर्भर करता है। इस मामले में जानवर हम से आगे हैं, क्योंकि उनको जो खाना है, उनके शरीर को जिस चीज की जरूरत है? वह वही खाते हैं। हमारी तरह जुबान के स्वाद के चक्कर में नहीं पड़ते। इस मामले में हम फिर से कुत्ते का उदाहरण लेते हैं। कुत्ता, जिसे जो कुछ भी मिल जाता है वह उसी में संतुष्ट होता है ना कि जबरदस्ती  आपके घर के अंदर घुसने की चेष्टा करता है। इस मामले में उससे हमें सीख लेनी चाहिए। जो हमें मिला है वह हमारे लिए बहुत कुछ है इस बात की संतुष्टि हमें रखनी चाहिए यह नहीं कि बड़े भैया ने वह खा लिया मैं रह गया या मैं रह गई। छोटे ने वह खा लिया मैं रह गया या मैं रह गई। इस मामले में भी हमें एहतियात बरतनी चाहिए।


4. ईमानदारी की आदत (Habit of honesty): -

ईमानदारी से अभिप्राय फ़कत इतना ही नहीं कि हम किसी से लेनदेन में हेराफेरी नहीं करते। यह तो हुई ईमानदारी की एक बात। ईमानदारी तो ऐसी चीज है जो हर वक्त हर कहीं हमारे सामने होती है। ईमानदारी से अभिप्राय हर किसी से है, जैसे क्या हम भगवान के प्रति ईमानदार हैं? क्या हम अपने माता-पिता के प्रति ईमानदार हैं? क्या आप अपने रिश्तो के प्रति ईमानदार हैं? या रिश्तेदारों के प्रति ईमानदार हैं? क्या हम अपने जान पहचान वाले पड़ोसियों के प्रति ईमानदार हैं? और क्या हम अपने काम के प्रति ईमानदार हैं?  हम खुद के प्रति ईमानदार हैं? वगैरह वगैरह। अब अगर हम गड़बड़ करते हैं तो हमें कोई अदृश्य शक्ति तो बेईमानी करने की सलाह नहीं देती होगी। इस बात का ध्यान रखिएगा दिखावटी मेहनत, और दिखावा तो हमेशा ही गलत हो जाता है, जब सच आगे आता है। हमारे समय में अपनी पाठ्यपुस्तक के बीच में कॉमिक्स रखकर पढने का प्रचलन था। वो कौन सी ईमानदारी थी।

5. काम मे मन लगाने की आदत (Habit of mind):-

कोई भी काम, चाहे कोई भी काम क्या हम अपना मन लगाकर करते हैं। काम करते वक्त क्या हम अपने काम को ही अपने दिलो-दिमाग पर रखते हैं? कहीं हम यह तो नहीं सोचते कि अभी तो ऐसे ही कर लेते हैं बाद में बढ़िया ढंग से करेंगे। ऐसा है, तो सोचना आपका बिल्कुल ही गलत है। इस मामले में एक छोटी सी कहानी इंटरनेट पर मैंने सुनी है। आपके साथ शेयर करना चाहूंगा। एक आर्किटेक्ट हुआ करता था। उसने अपनी मेहनत से अच्छे अच्छे और बहुत बढ़िया बढ़िया घर बनाए। जिस मालिक के पास वह काम करता था वह मालिक भी एक अच्छा इंसान था। जब वह आर्किटेक्ट रिटायरमेंट की उम्र तक आया। उसने अपने मालिक से अपने आप को सेवानिवृत्त करने के लिए कहा, तो मालिक ने उससे कहा कि आपको मैं सेवानिवृत्त कर दूंगा। लेकिन उससे पहले आप मेरा एक काम और कर दीजिये। आर्किटेक्ट को शायद ये उम्मीद नही थी। उसने तो सोचा था कि मालिक खुशी खुशी विदाई देंगे, परन्तु आखिरी वक्त में भी काम।उसने मन मार कर कहा, "ठीक है कहिये।" मालिक ने कहा, " मुझे एक सुंदर सा घर बना कर दीजिए आपके पास दो या तीन महीने का समय है।" आर्किटेक्ट ने बेमन से कहा, "ठीक है।" अगले दिन से उस घर को पूरा करने के लिए काम शुरू कर दिया। आर्किटेक्ट ने  अपने आखिरी काम  के लिए अपना शत प्रतिशत नहीं दिया। वो  ऐसे ही बेमन से उस मकान को पूरा करने में लग गया।
तीन महीने में जैसे-तैसे करके उसने उस काम को संपूर्ण किया। मकान की चाबी  सौंपने के लिए अपने मालिक के पास गया और उससे बोला कि "मैंने अपना काम कर दिया है। आपने जैसा घर बनाने के लिए कहा था वो घर मैंने बना दिया है। अब मुझे आज्ञा दीजिए।" कहकर मकान की चाबी अपने मालिक को थमा दी।
मालिक ने कहा "ठीक है अब आप सेवानिवृत्त होना चाहते हो तो मैं आपको रोकुँगां नहीं। आपने जो मेरे साथ इतना वक्त दिया मेरे कंधे से कंधा मिलाकर जो आपने मेरा साथ दिया उसके लिए मैं आपको तहेदिल से धन्यवाद देता हूँ, और कुछ ज्यादा तो नहीं, भेंट स्वरूप मैं आपका यह अंतिम बनाया मकान आपको भेंट करता हूं।" और मालिक ने आर्किटेक्ट को उस मकान की चाबी उसके हाथों में सौंप दी।

अब आप सोच सकते हैं कि उस आर्किटेक्ट को कितना पछतावा हुआ होगा। अपने काम करने पर।उसे पछतावा हो रहा होगा कि अगर मुझे पहले से पता होता कि यह घर मुझे ही मिलने वाला है। तो इसे मैं पूरी तन्मयता से अपना शत-प्रतिशत देकर दिल लगाकर मन लगाकर इस घर को बनाता। पर कहते हैं ना कि "अब पछतावत होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।" इसलिए हम कहते हैं कि कोई भी काम करो उसमें पूरी तरह मन लगाकर कर किस्मत का कोई भरोसा नहीं कब जाग जाए।

6. सही तरीक़े से अपनी ऊर्जा को खर्च करने की आदत (Used to spend your energy in the right way):-

कोई कंपनी जंगल में कुछ पेड़ों को कटवा रही थी उनमें 10 से 15 लकड़हारे रोजाना पेड़ काट रहे थे उन लकड़हारे में 14 लकड़हारे तो दिन में पांच-पांच ही पेड़ काट पाते थे। उनमें से एक लकड़हारा दिन में लगभग 10 पेड़ काट डालता था। मानवीय बात है की उस लकड़हारे से बाकियों को ईर्ष्या होनी ही थी। 

लेकिन अपनी नाक नीची ना हो जाए इस वजह से बाकी के लकड़हारे उससे यह नहीं पूछ पाते थे कि वह ऐसा कैसे कर लेता है। महीने पर जब मैनेजर ने सब का हिसाब किया तो उन सब में उस लकड़हारे की आमदनी उन सब से दुगनी हुई मैनेजर को भी कुछ शंका हुई तो उन्होंने पूछा कि भाई यह दिन के पांच पेड़ काटते हैं, और तुम दिन के 10 पेड़ काटते हो ऐसा कैसे संभव है? क्या तुम्हारे पास कोई ऊपर वाले की दी हुई अलग से उर्जा है? सभी लकड़हारे अब यह जानने को उत्सुक हो चुके थे कि अब वह क्या जवाब देगा, और वह भी आगे से ऐसा ही करेंगे और उनकी आमदनी भी दोगुनी हो जाएगी। मैनेजर के पूछने पर जब लकड़हारे ने जवाब दिया तो उसका जवाब कुछ यह था कि "साहब जी मैं दिन भर के आठ घंटों में जो पेड़ काटता हूं। उन आठ घंटों में से मैं चार घंटे अपनी कुल्हाड़ी की धार तेज करने में लगाता हूं और यह असंभव काम तब मैं पूरा कर पाता हूं।"
बात सिर्फ इतनी है कि काम करो तो उस काम के लिए तैयारी पूरी करो। हार्ड वर्क की बजाए स्मार्ट वर्क करो।
इस मामले में एक और बात बताना चाहूंगा की चाणक्य ने भी कहा है कि किसी काम को छोटा या बड़ा मत समझो काम छोटा हो या बड़ा, पहला हो या आखिरी उसमें शेर की तरह अपनी पूरी ताकत झोंक दो। क्या कभी आपने यह देखा..(डिस्कवरी चैनल या किसी और चैनल पर) है कि शेर छोटा शिकार करता है तब कम ताकत लगाता है या बड़ा शिकार करता है तब अधिक ताकत या बल लगाता है वह शिकार करता है तो अपने पूरे बल से करता है शिकार चाहे बड़ा हो या शिकार छोटा हो।

7. आलस्य करने की या कार्य को टालने की आदत (Habit of being lazy or avoiding work):-

कार्य कार्य होता है चाहे वह पढ़ने लिखने का हो या कोई जॉब कार्य हो। जब हम उस कार्य में ऑप्शन यानी यह नहीं तो वह कर लेंगे, वह नहीं तो यह कर लेंगे, इसमें मजा नहीं आ रहा मन नहीं लग रहा इसके बजाय तो वह अच्छा था। उसके बजाय तो यह अच्छा था। जब हम यह सोच लेते हैं तो यह समझ लीजिए कि हममें आलस्य का निवास है। और हम काम को टालने की भरसक कोशिश कर रहे। काम को टालना भी आलस्य ही होता है। काम में मन न लगाना भी आलस्य होता है। इस काम के बजाय कोई दूसरा काम ढूंढ कर अपने दिमाग में उस काम की अच्छी छवि बना लेना भी गलत है। इसे हमारे यहाँ "नियत हराम मे आना" कहते हैं।
आज के बजाय कल पर छोड़ना भी आलस्य है अब के बजाय 10 मिनट के बाद करेंगे यह करना भी आलस्य है। ओहो! ओह हो! यह सब तो आपको पता ही होगा इससे निजात कैसे पाया जाए? तो इसका हल भी आपके पास ही है किसी भी काम को करो तो मन लगाकर करो उसमें मजा लो उस काम को पूरी श्रद्धा से करो उस काम में मजा आए इस हिसाब से करो तब कभी बोर नहीं होंगे आप।
जब कभी हम पढ़ने के लिए बैठते हैं तो पढ़ने में मन नहीं लगता पक्की बात है! नहीं लगता! टीवी देखते हैं टीवी में मन नहीं लगता! चैनल बदलते रहते हैं। जहां ऐड दूसरा चैनल वहाँ एड तीसरा चौथा पांचवा छठा सातवां मतलब हमारा मन स्थिर नहीं है। इस मामले में सबसे पहले अपने मन को स्थिर करना सीखिए। वह दिन याद कीजिए जब चैनल एक ही हुआ करता था वह लोग भी तो कामयाब रहे होंगे जिन्होंने एक चैनल देखा था उन्होंने भी अपनी जिंदगी मजे से जी होगी अब आपके पास सैकड़ों हजारों चैनल हैं। एक चैनल की बात नहीं तब की बात याद किजिये जब टीवी भी नहीं हुआ करता। अब आप यह कहेंगे कि टीवी नहीं था तब कुछ ना कुछ तो मनोरंजन का साधन होगा ही लोगों को अपना मनोरंजन करने का। हां ! ये बात!  यह ढूंढिए यही तो ढूंढना गलत है। इस मामले में हमेशा याद रखिए कि कभी भी सामने वाले की कमियां ही न देखें उनमें अच्छाइयां भी देखें।
पूरी दुनिया बहुत ही सुंदर और खूबसूरत नजर आएगी। कमियां ढुंढने से मतलब यह है कि हमें अपनी थाली में घी कम ही नजर आता है। या हमारे पास कितनी ही सुविधाएं होने के बाद भी हमें कम ही लगती है। इस मामले में सबसे पहले तो आप अपने आप को संतुष्ट कीजिए कि हमारे पास जो कुछ भी है वह बहुत कुछ है। और अधिक पाने के लिए हमें और मेहनत करनी पड़ेगी। ये ध्यान में रखिए कि हमें और सिर्फ हमें।

8. किसी से उम्मीद करना या किसी की उम्मीद पर खरा उतरना भी एक आदत है (Expecting someone or living up to someone's expectation is also a habit):-

उम्मीद, उम्मीद पर ही सारी दुनिया कायम है। लेकिन अगर हम इसकी गहराई को देखें तो क्या हम किसी से उम्मीद करते हैं। अगर करते हैं तो क्या हम किसी की उम्मीदों पर खरा उतरते हैं? इस टॉपिक पर ज्यादा शब्दों का सहारा ना लेकर सिर्फ यही बात है कि अगर हमें उम्मीद करने का हक है, तो हममें किसी की उम्मीद पर खरा उतरने का फर्ज या कर्तव्य भी होना चाहिए।
एक महान आदमी जिनका नाम भूल गया हूं ने कहा था कि, "मैं ये नहीं जानना चाहता, कि मेरे दादाजी कौन हैं,  मैं ये जानना चाहता हूँ कि उनका पोता कौन है और वह क्या कर सकता है।"

9. विश्वास बनाने की आदत (Habit of building trust):-

काम वही हाथ में लो जो तुम पूरा कर सकते हो बेवजह की बढ़ाई लेने के चक्कर में, मैं यह भी कर दूंगा। मैं वह भी कर दूंगा। बेवजह के हाथ पांव मारने से क्या लाभ? इससे हमारे प्रति दूसरों का विश्वास टूटता है विश्वास जीतने का सिर्फ और सिर्फ एक ही तरीका है जो तुम कर सकते हो वही काम अपने हाथ में लो। जो तुम नहीं कर सकते इसके लिए स्पष्ट रूप से मना कर दो इसमें तुम्हारी कोई तोहीन नहीं होगी।स्पष्ट रूप से कह देना ही अच्छा होता है। इसके बजाय अगर तुम किसी के काम को हाथ में ले लो और उसे पूरा ना करो तो अधिक तोहीन होगी ना कि पहले से मना करने की बजाय। जिंदगी  की यह फिलॉस्फी याद रखो "स्पष्ट कहना और सुखी रहना!" किसी को भी या अपने आप को भी कभी गफलत में न रखो।

10.अपनी गुणवत्ता को कायम रखने की आदत (Habit of maintaining your quality): -


आखिरी और मुख्य बात कभी भी अपनी गुणवत्ता के साथ समझौता न करें अगर हम अपनी गुणवत्ता के साथ समझौता करने लग जाए तो हमारी गुणवत्ता समाप्त होती चली जाती है यह किसी परिस्थिति वश या हमारी लालच बस भी हो सकता है इस बात का हमेशा ख्याल रखें अपनी गुणवत्ता को अपने रवैया को ठीक ढंग से और संभाल कर रखें। रफ और सफ को वहीं रखें जहाँ इसकी जरूरत है। यह न सोचें कि अब तो हमें कोई नहीं देख रहा अब तो हम यह छोटे काम कर लेते हैं या वह कर लेते हैं जो गलत होगा। सबसे मुख्य बात यही है कि अपनी गुणवत्ता हमेशा बरकरार रखें इस बात में कोई दो राय नहीं कि हमारी गुणवत्ता भी हमारी एक पहचान होती है लोग हमारे बारे में हमारे पीछे से ही यह गारंटी ले सके कि नहीं वह आदमी यह काम नहीं कर सकता या वह आदमी यह काम तो कर सकता है यह एक अच्छे व्यक्तित्व की पहचान होती है एक मजबूत आदमी की निशानी होती है।
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तो यह हैं कुछ आदतें अगर आपको पसंद आयेंं तो...., चानस तो नही है, परन्तु उम्मीद पर ही तो दुनिया कायम है। टिप्पणी (comment)  करके सलाह दे, सुझावों का स्वागत है। आपके सुझाव हमें प्रेरणा देते हैं, प्रेरित करते हैं। धन्यवाद।👍
10-Habits-good-or-bad-choice-your-own
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