Hume blogging kyon karni chahiye
हमें ब्लोगिंग क्यों करनी चाहिए?
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• इस धरती पर आये हर एक जीव मे कोई न कोई अपनी एक खास प्रतिभा होती है। मनुष्य धरती के जीवों में श्रेष्ठ जीव है। श्रेष्ठ इसलिए कि अपनी प्रतिभाओं में परीक्षण करता रहता है, और उन्हें विकसित करता रहता है। उसी एक्सपेरिमेंट की वजह से ही आज हम कागज की किताबों के बजाए इ-बुक्स ज्यादा पढ़ना पसंद करते हैं।
क्या आपमें दक्षता है? अपनी दक्षता को पहचान कर साझा करें (Do you have skill Recognize and share your skills)
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मनुष्य की तरक्की के बारे मे कुछ कहने की जरूरत नहीं है, हम सभी को पता है, और वैसे भी हम कुछ और डिस्कस करने वाले हैं। मच्छर नाम के जीव को अगर छोड़ दें तो शायद ही किसी जीव ने अपनी प्रतिभाओं को विकसित किया हो। मच्छर पहले हमारी हथेली या तलवों में डंक नहीं मार पाते थे और ना ही हमारे कपड़ों के ऊपर से डंक मार पाते थे। मगर ऐसा अब नहीं है। उन्होंने अपने डंक को अधिक विकसित कर लिया है। अब वह हमारे कपड़ों के ऊपर से भी डंक मार लेते हैं, हैं ना!!Take inspiration yourself and give it to others
👍खैर अगर हममें भी कोई प्रतिभा है,कोई ज्ञान है,तो उसे दूसरों में बांटने का हमें पूरा अधिकार है, और अधिकार ही क्या! हमारा फर्ज बनता है; कि हम अपनी बातें दूसरों के साथ शेयर करें जिनको पता नहीं है;उन्हें बताएं। ब्लॉगिंग सबसे बढ़िया तरीका है, अपने हुनर को दूसरों के साथ शेयर करने का। ब्लॉगिंग से हम लोगों को कुछ सिखा सकते हैं। कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां दे सकते हैं। इसके साथ-साथ हम अच्छी खासी कमाई भी कर सकते हैं।• प्रेरणा दायक विचार कि हमारी प्रतिभा दबी क्यों रह जाती है?क्योंकि हम संकोची होते हैं और बेइज्जती का डर.
• हममें रचनात्मकता तो हो सभी में होती है, परंतु उन्हें उभारने में संकोच होता है। हमें लगता है, कहीं यह किसी को पसंद ना आए। अगर किसी ने कह दिया यह तो बहुत गंदा है। यह तो बहुत ही घटिया लिखा तुमनें, यह बहुत ही बदसूरत है, यह तो किसी के समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर आपने बनाया क्या है वगैरह-वगैरह। और सिर्फ सोच सोच कर ही कुढते रहते है, हम खुद पर ही शर्मिंदा होने लगते हैं। इसे कहते हैं; अपने आप पर भरोसा न करना। अपने ऊपर शक करना या शंका करना जिसे हम आत्मविश्वास की कमी भी कह सकते हैं। अपने आप को पहचानो अपने टैलेंट को पहचानो उठो! जागो! सवेरा हो चुका है। सोमवार की राह मत देखो या तो आज ही सोमवार है या फिर सोमवार कभी नहीं आएगा।
• हम स्कूल समय को ही ले तो शिक्षक जब कभी प्रश्न पूछते हैं, तो कुछ विद्यार्थियों को उस प्रश्न का जवाब मालूम होता है; परंतु वह कभी अपना हाथ नहीं उठाते, जवाब देने के लिए।
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क्योंकि उन्हें अपने ऊपर शंका होती है कि,'कहीं मैं गलत ना होऊ!'उन्हें अपने ऊपर विश्वास ही नहीं होता है। जिन्हें थोड़ा बहुत जवाब मालूम होता है, वह निर्भीकता से जवाब दे देते हैं, और संपूर्ण जवाब हासिल कर आगे बढ़ जाते हैं।अपने भय और संकोच के कारण काबिल विद्यार्थी पीछे छूट जाते हैं। स्कूल समय में की गई गलती को दोबारा ना दोहराए तो अच्छा है।
• कहीं पर मैंने एक कहावत पढी़ थी कि, " प्रश्न पूछने पर हमें सिर्फ कुछ क्षण ही बेइज्जती महसूस होती है और अगर हम सवाल नहीं पूछते हैं तो हम ताउम्र बेइज्जत होते रहेंगे!" हमारे अंदर कुछ जिज्ञासा हुई और हमारे दिमाग में कुछ प्रश्न उत्पन्न हुए। अगर हम वह प्रश्न किसी से नहीं पूछेंगे; तो हमारी जिज्ञासा कैसे शांत होगी ? एक बात साफ तौर पर जान लो कि मां के पेट से कोई कुछ भी नहीं सीख कर आता ना तो प्रश्न ही! और ना ही उत्तर! जिनके पास प्रश्न है, वह भी उन्हें दुनियादारी देखने पर ही मिलते हैं, और जिनके पास जवाब है; वह भी उन्हें यही पर मिले हैं। यह बात सोच कर क्यों परेशान होते हो कि लोग यह कहेंगे कि 'अरे यार तुझे यह भी नहीं पता?' या 'अरे यार ये तो सभी लोग जानते हैं।' अरे भाई नहीं पता तो नहीं पता इसमें बेइज्जती कैसी मां के पेट से कोई सीख कर नहीं आया उन्हें भी तो यह जानकारी इसी दुनिया में मिली है इत्तेफाक सिर्फ यह है कि उन्हें वह जानकारी आप से कुछ समय पहले मिल गई बस! इससे ज्यादा कुछ नहीं। जो कहते हैं कि सबको पता है, उनसे ये पुछिये कि क्या आपको सम्पूर्ण ग्यान है?
• कहीं पर मैंने एक कहावत पढी़ थी कि, " प्रश्न पूछने पर हमें सिर्फ कुछ क्षण ही बेइज्जती महसूस होती है और अगर हम सवाल नहीं पूछते हैं तो हम ताउम्र बेइज्जत होते रहेंगे!" हमारे अंदर कुछ जिज्ञासा हुई और हमारे दिमाग में कुछ प्रश्न उत्पन्न हुए। अगर हम वह प्रश्न किसी से नहीं पूछेंगे; तो हमारी जिज्ञासा कैसे शांत होगी ? एक बात साफ तौर पर जान लो कि मां के पेट से कोई कुछ भी नहीं सीख कर आता ना तो प्रश्न ही! और ना ही उत्तर! जिनके पास प्रश्न है, वह भी उन्हें दुनियादारी देखने पर ही मिलते हैं, और जिनके पास जवाब है; वह भी उन्हें यही पर मिले हैं। यह बात सोच कर क्यों परेशान होते हो कि लोग यह कहेंगे कि 'अरे यार तुझे यह भी नहीं पता?' या 'अरे यार ये तो सभी लोग जानते हैं।' अरे भाई नहीं पता तो नहीं पता इसमें बेइज्जती कैसी मां के पेट से कोई सीख कर नहीं आया उन्हें भी तो यह जानकारी इसी दुनिया में मिली है इत्तेफाक सिर्फ यह है कि उन्हें वह जानकारी आप से कुछ समय पहले मिल गई बस! इससे ज्यादा कुछ नहीं। जो कहते हैं कि सबको पता है, उनसे ये पुछिये कि क्या आपको सम्पूर्ण ग्यान है?
हमेशा प्रेरित रहकर आगे बढ़े, उत्साह को कम न होने दें, हमेशा उत्साहित रहें (Do not let your enthusiasm wane, always be excited)
• कभी कभी कुछ देखकर या कुछ पढ़ कर या कहीं से भी इधर उधर से जानकारी पाकर, एक बार फिर हम उत्साहित होते हैं और कोई काम हाथ में ले लेते हैं फिर हम जमकर मेहनत करते हैं 1 दिन 2 दिन 3 दिन लगातार मेहनत करते हैं, और इसी में डूबे रहते हैं। इधर उधर की हमें कोई जानकारी नहीं रहती और फिर कभी इधर उधर से कोई छोटी सी बात हमारे दिमाग में आ जाती है, और फिर हम,"अच्छा यह बात हो गई।" यह सोचकर अपने लक्ष्य पर से ध्यान हटा लेते हैं, और जिस काम को करने मे मजा आ रहा था जो बहुत ही हल्का लग रहा था, बहुत आसान लग रहा था वो ही लक्ष्य हमारा पहाड़ के समान बन जाता है। हमें लगता है, यार यह हमारे बस की बात नहीं। मैं जहां कुछ कर रहा था वहां तो लोगों को पहले ही पता है। दुनिया कहां से कहां पहुंच गई और मैं अभी तक ये ही सोच रहा हूं। और हमारे गुब्बारे की हवा फिशशश.. से निकल जाती है और फिर हम अपने लक्ष्य से किनारा कर लेते हैं, और कोई दुसरा औप्शन ढुढने लगते हैं। सोच लेते हैं कि हमारे बस की बात नहीं है छोड़ो कुछ और देखते हैं और इसमें तो वैसे ही खामख्वाह ही दिमाग खराब करना है। वैसे भी यह करना तो पागलपंती है।लक्ष्य को पाने के लिए अकेले ही चलना होगा, बगैर किसी की सुने यही तो पागलपंती है (One has to walk alone to achieve the goal, this is crazy without anyone listening.)
इस बारे में आइंस्टीन ने कहा है कि या तो मैं पागल हूं या दुनिया के लोग पागल है यानी हमें एक को तो पागल मानना ही पड़ेगा। अब सोच लीजिए आपको पागल बनना है, या .........। यानी अपने लक्ष्य का पागलपन की हद तक पीछा करना है। सोचिए जब हवाई जहाज बनाने वालों ने लोगों के सामने अपनी बात रखी होगी, कि वह भी पक्षियों की तरह आकाश में उड़ सकते हैं; तो लोगों ने उन्हें बेवकूफ या पागल ही बताया होगा। ऐसे उदाहरण दुनिया में भरे पड़े हैं।
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