क्या हम अपने काम के प्रति ईमानदार हैं? काम करते रहना और ईमानदारी से कार्य करना क्या अलग बातें हैं?
क्या आप अपने लक्ष्य के लिए ही मेहनत कर रहे हैं? क्या हम अपने काम के प्रति ईमानदार हैं?
हम मेहनती हैं और हम मेहनत करते हैं! खुब मेहनत करते हैं, परन्तु उसका परिणाम संतुष्टि जनक नहीं होता। कहीं हम अपनी मेहनत; अपने लक्ष्य को किनारे कर किसी आरामदायक काम या कहें वह काम जिसका कोई औचित्य नहीं वह तो नही कर रहे? लक्ष्य हमारा कुछ और है और हम मेहनत किसी और चीज मे कर रहे हो।
विद्यार्थियों के लिए एक छोटा सा उदाहरण लेते हैं जैसे कल आपका टेस्ट हो आपके सिलेबस में से किसी विषय का और आप चर्चा कर रहे हो सामान्य ज्ञान की।
गफलत की बात करें तो...... गफलत मतलब जानबूझकर लक्ष्य से भटक कर किसी अन्य काम में इंटरेस्ट आ जाए और उसी में लगे रहना। जानबूझकर इसलिए कहना पड़ रहा है क्योंकि मजे वाले काम को करते हुए हमें अपने लक्ष्य के लिए जो कार्य करना था वह याद रहता है लेकिन हम यह सोचते रहते हैं थोड़ी देर और थोड़ी देर और थोड़ी देर और! और फिर बहुत देर हो जाती है।
एक छोटी सी बात और अगर किसी को पसंद ना आए तो खेद है। क्या हम अपने लक्ष्य के प्रति शत-प्रतिशत ईमानदार हैं? क्या हम कोई बहाना या कोई दूसरा ऑप्शन तो तलाश नहीं कर लेते? कहीं हमारे अपने लक्ष्य के लिए किए गए कार्यों में दिखावटीपन तो नहीं है? छोटी सी कहानी को लेते हैं फिर देखते हैं।
एक बार एक जंगल में लगभग जानवरों ने मिल कर सभा बुलाई। समस्या थी कि सभी जानवर अपने खाने व पीने के चक्कर मे रहते हैं, उनके ऊपर आने वाली छोटी मोटी परेशानियों को सुलझाने के लिए क्या किया जाऐ! कि वे अपने खाने के बंदोबस्त मे लगे रहे और परेशानी आने पर भगदड़ न मचे। उनकी परेशानी सुलझाने के लिए कोई हो जो पहले से उन्हें आगाज कर दे अथवा समस्या आने पर उनका कोई निदान करें।
• जिम्मेदारी दी नही जाती लेनी पड़ती हैं।
मसलन, शिकारियों के आगमन की सुचना, उनके बच्चों की देखरेख का माजरा या किसी दूसरे जंगल से आए जानवरों के बारे में बताना, वगैरह- वगैरह। कहने का मतलब है कि किसी भी खतरे से निपटने के लिए उस प्रतिनिधि को तैयार रहना होगा जिसे प्रधान की उपाधि दी जाएगी।सभी जानवरों में आपस में सुगबुगाहट होने लगी कि आखिर कौन होगा, जिसके पास इतना वक्त होगा कि वह हम सब के बारे में सोचेगा और हमारी देखभाल की पूरी जिम्मेदारी उठाएगा? वैसे भी प्रधान बनने के लिए तो लगभग सभी तैयार हैं लेकिन कोई समझदार हो, भरोसेमंद हो, जिम्मेदार हो, ईमानदारी से अपना फर्ज निभाएं।
कुछ जानवरों ने किसी का नाम लिया तो कुछ जानवरों ने किसी का। कहने का मतलब है कि कभी कोई लोमड़ी का नाम लेता कभी कोई खरगोश का, कोई लंबी गर्दन वाले जिराफ का नाम लेता। आखिर में काफी खचर पचर के बाद सर्वसम्मति से बंदर महाराज को प्रधान पद की उपाधि से नवाजा गया। अब आगे से बंदर महाराज सभी जानवरों की समस्याओं का निदान करेंगे, कहकर जानवरों ने सभा भंग की और अपने अपने काम मे लग गए।
•अपने काम के प्रति जागरूक रहेंं।
अब बंदर महाराज आराम से पेड़ों पर बैठे रहते। कुछ आसानी से मिल जाता खाने के लिए तो उसे ले लेते! कोई ज्यादा कष्ट न उठाते। किसी के पास कुछ अपने खाने की कोई भी चीज होती, तो उसे उससे मांग करते और अपनी प्रधानी का रौब झाड़ते हुये कहते, कि मैं तुम सभी की समस्याओं का समाधान करने के लिए हूँ! मुझे कुछ खाने के लिए तुम्हें ही तो देना होगा।गनीमत यह थी कि , अभी तक कोई समस्या नहीं आई थी। बंदर महाराज के दिन अच्छे कट रहे थे।
फिर एक दिन एक मादा हिरन रोते-रोते बंदर महाराज के पास आई और गुहार लगाने लगी, 'हे बंदर महाराज! हे प्रधान जी! मेरे बच्चे को शेर उठाकर ले गया है, कृपया उसे बचाओ मेरी मदद करो मेरे बच्चे को बचाओ।'
यह सुनकर बंदर महाराज जो पेड़ पर आराम कर रहे थे पेड़ से अचानक नीचे कूद पड़े और बोले, 'क्या? शेर बच्चा ले गया?'
मादा हिरन, 'हां!' रोते-रोते और, 'वो उसे खा जाएगा! आप कुछ कीजिए प्रधान जी।'
वैसे तो बंदर महाराज के शेर का नाम लेते ही होश उड़ गए थे लेकिन प्रधानी का जोश भी था उनमें।
मेहनत अपने लक्ष्यों के लिए करे, बेवजह की नही।
मन मे कुछ विचार किया और बंदर महाराज ने आव देखा न ताव उछलते हुए पेड़ पर चढ़ गए और कभी इस पेड़ पर जाते कभी उस पेड़ पर जाते कभी इस पेड़ पर कभी उस पेड़ पर।चार पांच पेड़ों को उन्होंने घेरे में ले लिया और उनके इधर से उधर चक्कर काटने लगे। चार पांच पेड़ों के अलावा वह किसी अन्य पेड़ की ओर आगे नहीं बढ़ पा रहे थे, शेर के नाम से वैसे ही उनकी हवा हवाई हो चुकी थी ।
बंदर महाराज यानी प्रधान जी को पेड़ों के इधर से उधर चक्कर काटते हुए, मादा हिरण के पास सहानुभूति के लिए कुछ जानवर आए थे, वह मुंह और आंखें फाड़े प्रधान जी की ओर देख रहे थे।
तभी मादा हिरन रोती हुई बोली 'प्रधान जी आप ये क्या कर रहे हैं?'
बंदर महाराज पेड़ पर रूककर बोलें, 'कर क्या रहा हूँ? दिखाई नहीं देता तुम्हारे बच्चे को बचाने के लिए भागदौड़ कर रहा हूं।'
मादा हिरन और पास खड़े जानवरों ने देखा और सोचने लगे बच्चे को बचाने के लिए पेड़ों पर इधर से उधर कूदने में कौन सी भागदौड़ है? बच्चे को बचाना है तो शेर की गुफा की ओर जाएं इन पेड़ों में शेर या बच्चा तो मिलेगा नहीं।
थोड़ी देर बाद थक कर बंदर महाराज एक पेड़ की डाली पर बैठकर अपनी सांसे संभालते हुए बोले- 'भागदौड़ में तो मैं कोई कमी नहीं छोड़ रहा हूं, अभी कुछ पल सुस्ता लेता हूं फिर भागदौड़ शुरू करता हूं।'
सभी जानवर प्रधान जी की भागदौड़ देखकर हैरान परेशान थे। आखिर बच्चे को बचाने के लिए यह कौन सी?, और कैसी भाग दौड़ कर रहे हैं? प्रधान जी?
'मैं अपनी भागदौड़ में कोई कोर कसर नहीं छोडूंगा अब तुम्हारे बच्चे को शेर खाएगा तो खाए! ही! गा! इसमें मैं क्या कर सकता हूं? हैं..हैं.. हैं... !' प्रधान जी अपनी सांसे काबू में करने लगे।
आपको क्या लगता है? क्या सही हो रहा है? ऐसा नहीं लगता कि लक्ष्यहीन मेहनत करी जा रही है। क्या बंदर महाराज इमानदारी से अपना फर्ज निभा रहे हैं? क्या वह अपनी जिम्मेदारियों से भाग नहीं रहे? क्या वह जानबूझकर बिना सिर पैर की मेहनत नहीं कर रहे? कहीं हम भी तो दिखावटी मेहनत तो नहीं कर रहे हैं? कहीं हम भी सिर्फ लोगों की नजरों में आने के लिए बहुत मेहनत का ढकोसला तो नहीं कर रहे?
मेहनत सफलता के लिए करना है, मेहनत का दिखावा नही करना है।
हमें दुनिया को अपनी मेहनत नहीं दिखानी अपना लक्ष्य हासिल करके दिखाना है, हमें मेहनत ही करनी है तो उस लकड़हारे की तरह करेंगे जो दिन भर के 8 घंटों में दूसरे लकड़हारों से दुगने पेड़ काटता था। कैसे? पूछने पर उसका जवाब यह होता था कि, 'उन 8 घंटों में मैं 4 घंटे अपनी कुल्हाड़ी की धार बनाने में लगाता हूं।' यानी लक्ष्य को हासिल करने के लिए उसकी स्पष्ट जानकारी और तैयारी पर संपूर्ण ध्यान देना अत्यधिक आवश्यक है। हमें स्वयं के प्रति ईमानदार होना चाहिए, वरना बेवजह की मेहनत से क्या लाभ?
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