Chanakya niti in hindi life 5 simple easy ways for better life
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Chanakya niti in hindi life बेहतर जीवन के लिए 5 आसान आसान तरीके
आचार्य चाणक्य एक महान शिक्षक ही नहीं दार्शनिक व कूटनीतिज्ञ भी थे। 'चाणक्य नीति' व 'कौटिल्य अर्थशास्त्र' एक पठनीय सामग्री ही नहीं अपितु उन पर चलकर उनके सिद्धांतों को स्वयं पर लागू कर एक स्वस्थ मनुष्य, एक स्वस्थ परिवार, एक स्वस्थ समाज, और एक स्वस्थ और मजबूत राष्ट्र का निर्माण किया जा सकता है।
वह चाणक्य ही थे जिन्होंने एक आम अध्यापक होते हुए भी एक साधारण अवस्था में रहने वाले बालक की क्षमताओं को पहचान कर उसे एक राष्ट्र निर्माता बनाने तक का अद्भुत कार्य कर दिखाया। उनकी चाणक्य नीतियां शुरुआत में बड़ी कठिन प्रतीत होती है, परंतु परिणाम सदैव सकारात्मक ही निकलते हैं।
आइए चाणक्य नीति में से आचार्य चाणक्य की कुछ बुद्धिमान लोगों के लिए दी हुई हिदायतों के बारे में जानते हैं कि बुद्धिमान लोगों को क्या करना चाहिए? या कहें बुद्धिमान लोग क्या करते हैं और उन्हें क्या नहीं करना चाहिए?
1. चाणक्य नीति:- बुद्धिमान पुरुष को अपने धन के नाश होने पर किसी को नहीं कहना चाहिए।
इसमें क्या गलत कहते हैं आचार्य चाणक्य अगर हमारा धन का नुकसान होता है, और अगर हम बखान करेंगे तो हमें अच्छी तरह एहसास होता है कि इनमें हम से हमदर्दी करने वालों की बजाए हम पर हंसने वालों का प्रतिशत अधिक होगा, हमारे दुख से दुखी होने वालों की बजाय अंदर ही अंदर खुश होने वाले अधिक होंगे, हमें तसल्ली देने वालों की बजाय शिक्षा देने वाले अधिक होंगे। "हमसे पहले पूछ लेते तो हम ऐसा नहीं होने देते।" ऐसा वही कहेंगे जिन से आपने नुकसान से पहले जिक्र जरूर किया होगा परंतु वे उस समय सब कुछ समझने पर भी अंजान बनने का अभिनय करते रहे; क्योंकि वे आपसे विनती करवाने की उम्मीद पाले बैठे थे।
इसके बजाय कि "हो गया सो हो गया अब आगे से इस नुकसान को सिर्फ अपना अनुभव बनाओ, इससे सीख लो, विश्लेषण करो और उस गलती को ढूंढने की कोशिश करो जिससे ऐसा हुआ उसका दोहराव ना हो यह सदैव स्मरण रखो।" ऐसा कहने वालों की कमी आपको खल सकती है। इसीलिए आचार्य चाणक्य कहते हैं कि बुद्धिमान लोग अपने धन का नाश होने पर किसी से ना कहें।
बुद्धिमान पुरुष को चाहिए कि धन के नुकसान को यह सोच कर स्वयं को तसल्ली दे या संतुष्टि ले कि, आखिर वह इस दुनिया में आया था; तो क्या लेकर आया था। जिस धन का नाश हुआ है। वह इसी दुनिया से लिया था, और फिर इसी दुनिया ने ही उससे वापस ले लिया। बात खत्म! कुढ़ने की या बखान करने की क्या जरूरत है, हालांकि दुखी होने की बात तो है। परन्तु स्मरण रखें कि हमें दुखी देखकर दुख जाहिर करने वालों में दिल से दुखी होने वालों की बजाय दिखावा व अभिनय करने वालों का ही फीसद अधिक होगा। चाणक्य नीति ही नहीं सांसारिक नीति भी यही सिखाती है।
2. Chanakya Niti In Hindi जीवन में अपने संताप को किसी से ना कहें, सर्वश्रेष्ठ सरल प्रेरणादायक और ज्ञान भरी बात।
हमारा मन चंचल है यह तो सभी जानते हैं सर्वप्रथम तो इसे एक एकाग्र या कहें स्थिर करें। फिर उस संताप पर विश्लेषण करें कि आखिर बेचैनी किस बात की है। यह संताप यह दुख सकारात्मक भी हो सकता है और नकारात्मक भी, स्वयं के करने लायक है, या दूसरों की मदद की जरूरत है। जितना हो सकता है उतना स्वयं से ही करने की कोशिश करें। दूसरों की मदद क्यों और कैसे ली जाए या ली जा सकती है? यह विचारे ना कि अपने दुख या खुशी का बखान बघारते रहे।क्योंकि ऐसा बुद्धिमान व्यक्ति कभी नहीं करते हैं। और आप भी ना करें चाणक्य नीति यही कहती है कि हमें दुख हो तो उसे किसी से भी कह कर हम स्वयं का ही नुकसान कर रहे हैं।
चार थन वाले चार जानवरों के बारे में आप नही जानते विचारिए यकीनन तीन भी पूरे नही कर पाएंगे।
जबकि कहा यह भी गया है कि दुख को बांटने से वह कम होता है पर इस मामले में सामने वाला कौन है? इसका भी ध्यान रखें तो अच्छा होगा। विश्लेषण भी इसीलिए है कि बताने पर या सुनाने पर सुनने वाला क्या प्रतिक्रिया करेगा या वह क्या कर सकता है? अगर वह कुछ कर ही नहीं सकता तो कहने का क्या लाभ? ये तो सिर्फ भड़ास निकालने की ही बात भर हुई। चाणक्य नीति यही कहती है कि अपने संताप यानि दुःख, पीड़ा, व्यथा, यातना, वेदना आदि को बुद्धिमान लोग किसी से ना कहें। अभिप्राय यह है कि आचार्य चाणक्य के अनुसार व्यक्ति को आत्मनिर्भर और परिपूर्ण बनना चाहिए।
3. Chanakya Niti In Hindi for better life क्या घर की बुराइयों को किसी को कहना चाहिए?
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि बुद्धिमान पुरुष को चाहिए कि वह अपने घर की बुराइयों को किसी से ना कहें। समस्या कहा नहीं है? अगर हमारे घर में भी कोई समस्या होती है तो इन बातों का जिक्र किसी अन्य से करने की बजाय आत्मविश्लेषण करें। क्योंकि घर में कुछ बुरा होता है तो उस बुराई के जिम्मेदार हम भी तो हो सकते हैं? क्योंकि हम अपने घर के ही तो सदस्य हैं। इसके अलावा अगर घर में बुराई की वजह हम नहीं भी हैं तो उसे बढ़ावा देने या घटाने के लिए हमने क्या किया है? अगर हमने उसके बारे में विचार नहीं किया, तो उसे बुरा कह कर किसी के सम्मुख प्रदर्शन कर घर के दूसरे सदस्यों के लिए नफरत और स्वयं के लिए प्रशंसा की उम्मीद करना कहां तक जायज है? रही बात घर की बुराई की तो उसे मिलकर हल करें न कि किसी दूसरे से हल की उम्मीद करें।
चाणक्य नीति क्या कहती है पारिवारिक रिश्ते के बारे में
पहली बात क्रोधवश या परिस्थिति वश अगर हम किसी के सामने उसका जिक्र कर भी देते हैं, तो कल उसका नकारात्मक प्रभाव भी पड़ सकता है। यह घर के लोगों बारे में समस्या ही नहीं अपितु घर की किसी भी समस्या पर लागू होती है। मसलन आर्थिक क्योंकि अगर हम किसी से अपने घर की बुराई का जिक्र कर देते हैं तो वह एक तरह से हमारा राजदार हो जाता है। ताउम्र उसका एक प्रकार का दबाव सा अनुभव करेंगे।
दूसरी, बदलाव प्रकृति का नियम है परिस्थितियां बदलती है बुराई अच्छाई में बदल जाती है तब हमारे मन के कोने में एक भय जैसी चीज रहती है कि एक राज है जो किसी को पता है और फिर हम स्वयं को ही संदेह के घेरे में ले लेते हैं मन विचलित रहने लगता है, बेचैनी रहती है।
यह अलग बात है कि उस समय परिस्थिति क्या थी? आपको मजबूरी में ऐसा करना पड़ा था या...? परंतु स्मरण रहे उस समय की परिस्थिति को कोई नहीं देखता या देखेगा। आज को देखेंगे हालांकि ऐसे भी हैं जो उस समय की परिस्थिति को भांपकर आपका साथ दे सकते हैं मगर स्थिति और भाग्य आपके साथ हो तभी ऐसा संभव है। अन्यथा नहीं। क्योंकि आज या तो किसी के पास वक्त ही नहीं है। और अगर है भी, तो वह आप पर क्यों खर्च करेगा? हमारे यहां एक कहावत है, "आज का लिप्या न सराहिईये" इसका अर्थ है कि आज की परिस्थिति है वही सराहनीय है। उसके लिए क्यों किया गया? कैसे किया गया, इसके लिए क्या कष्ट उठाया गया यह कोई नहीं देखता। तो क्यों ना हम पहले ही आचार्य चाणक्य की चाणक्य नीति की इस बात को गांठ बांध लें कि घर की बुराइयों को किसी से ना कहें।
4. Chanakya niti in hindi क्या कहती है कि "किसी धूर्त से ठगे जाने पर क्या किसी को बताना चाहिए?"
आचार्य चाणक्य की इस बात को पढ़ते ही मुझे अपने स्कूल के समय की याद आती है। उस समय हमारे हिंदी के पाठ्यक्रम में मुंशी प्रेमचंद की एक कहानी शामिल थी। आप सब ने भी जरूर पढ़ी होगी। उस कहानी के मुख्य पात्र तीन हैं, बाबा भारती, डाकू खड़गसिंह और बाबा भारती का घोड़ा। कहानी के अनुसार बाबा भारती के घोड़े पर खड़गसिंह मोहित हो जाता है, और उसे पाने की जुगत लगाता रहता है। आखिर में खड़गसिंह एक असहाय रोगी का रूप धारण करता है, और उस रास्ते पर बैठ जाता है; जहां बाबा भारती अपने घोड़े पर सवार होकर घूमते हैं।
एक असहाय रोगी की हालत पर करुणामय होकर बाबा भारती स्वयं घोड़े से उतरते हैं, और उस रोगी को उस पर बैठाते हैं। रोगी घोड़े पर बैठते ही अपने असली रूप में आ जाता है। बाबा भारती हतप्रभ रह जाते हैं। बाबा भारती खड़गसिंह से केवल यह कहते हैं, "खड़गसिंह, ठीक है तुम यह घोड़ा ले जाओ, परंतु मेरी एक विनती है कि तुम इस बात का जिक्र कभी भी किसी से न करना। खड़गसिंह के पूछने पर कि क्यों? तो बाबा भारती कहते हैं, "अगर इस बात का सभी को पता चलेगा कि तुमने एक असहाय रोगी बन कर बाबा भारती को ठगा है, तो लोग किसी असहाय पर विश्वास नहीं करेंगे। हालांकि कहानी के अंत में बाबा भारती के कहे शब्दों का असर होता है। खड़गसिंह को बाबा भारती के कहे शब्द कचोटते हैं, और वह घोड़ा वापस कर देता है।
अगर आपने यह कहानी नहीं पढ़ी है तो पढ़िए जरूर। वर्णात्मक तरीके से लिखी इस कहानी को पढ़ें। ऐसा ही आम जीवन में होता है। अगर हम ठगे जाते हैं और किसी को बताते हैं तो उपहास का ही पात्र बनेंगे। यह अलग बात है कि लोग आपके सम्मुख एक अलग व्यवहार करते दिखेंगे जैसे 'तुम्हें वैसा नहीं लगा', 'तुम्हें देखना चाहिए था' 'इतने मूर्ख तो नहीं हैं' 'आपका ध्यान किधर था' आपने ध्यान ही नहीं दिया' वगैरह-वगैरह। दूसरे आपके अनुभव को स्वयं पर लागू करेंगे और चाहे कोई सच में भी समस्या से ग्रसित हो, पर वह उसे भी अपने संदेह के घेरे में रखेंगे यह भी चाणक्य नीति ही नहीं सांसारिक नियम भी है।
5. Chanakya niti in hindi better life ke liye अपने हुए अनादर को भी किसी से ना कहें।
अपने हुए अनादर का अगर हम किसी के सामने जिक्र करते हैं। तो कल को सुनने वाले की नजरों में भी हमारी छवि धूमिल हो जाए।
यह भी स्मरण रखें कि अब हो गया सो हो गया अब बताने से क्या लाभ?
अनादर करने वाले को ही कभी एहसास कराया जाए कि उससे गलती हुई है।
कहीं भूलवश तो ऐसा नहीं हो गया है?
अगर जानबूझकर हुआ है तो भी सामने वाले की कुंठा समझें, ना कि क्रोधित होकर बैर भाव पालें आप का अनादर करने से उसे खुशी मिलती है तो उसे दें क्योंकि दुनिया में हर किसी को कर्मों के हिसाब से ही कार्य सौंपा जाता है।
बुद्धिमान पुरुष सहनशीलता के साथ अपने जीवन को सार्थक बनाने की ओर अग्रसर रहते हैं ना की छोटी-छोटी बातों में पड़कर स्वयं को विचलित कर अपने मार्ग से भटक जाते हैं। इस मामले में सिर्फ यही सोचते हैं कि यह मुझे अपने पद से भटकाने का एकमात्र पहलू था। जिसे मुझे याद न कर भूल जाना चाहिए और अपने लक्ष्य की ओर प्रशस्त होना चाहिए।
एक छोटी सी कहानी अनादर करने वाले को ही मुंह की खानी पड़ी। चाणक्य नीति के अलावा
एक बार स्वामी विवेकानन्द विदेश यात्रा पर थे। अमेरिका में स्वामी जी एक पुस्तकालय में गए पुस्तकालय में पहुंचने से पहले वहां के एक उच्च अधिकारी ने स्वामी जी को चिढ़ाने या कहें अनादर करने की अपनी मानसिकता वश हमारी "श्रीमद्भगवद्गीता" को टेबल पर रखी पुस्तकों में सबसे नीचे रख दिया यानी गीता को सबसे नीचे और फिर उसके ऊपर बाकी के देशों की पुस्तकों को और अपने देश की पुस्तक को सबसे ऊपर शिखर पर रखा। उस व्यक्ति ने स्वामी जी को यह दिखाते हुए कहा "स्वामी जी यह देखिए हमारे देश की पुस्तक हमारी ही तरह है शिखर पर है और आपकी "श्रीमद्भगवद्गीता" सबसे नीचे।" वह व्यक्ति यह दिखाना चाह रहा था कि आपके जो विचार हैं वह बहुत छोटे हैं हमसे।
उसकी यह बात सुनकर स्वामी जी मुस्कुराए और उस अधिकारी के कंधे पर प्यार से हाथ रख कर बोले, श्रीमान हमारी "श्रीमद्भगवद्गीता" सबसे नीचे है इस से अभिप्राय यह है कि हमारी गीता ऊपर रखी सभी पुस्तकों की नींव है। यह आधार है ऊपर की सभी पुस्तकों का। हमारी गीता से ही बनी है बाकी की सारी पुस्तकें। बगैर आधार के क्या शिखर बनाया जा सकता है? यह बाकी की सभी पुस्तकें हमारी गीता से ही ऊपजी हैं।"
यह सुनकर वह अंग्रेज अधिकारी खीझ कर रह गया। उसके बाद स्वामी जी के शिकागो के भाषण को सारी दुनिया जानती है। जिसमें उस अधिकारी समेत अमेरिका नतमस्तक हुआ था। ऐसे थे हमारे महापुरुष जो अनादर की मंशा वालों को अपने संयम और वाक् चातुर्य से निरुत्तर कर देते थे।
तो बात अनादर की हो रही थी अनादर का बखान करने के बजाय, उसका बदला लेने के बजाय सामने वाले को एहसास भर कराया जाए तो ही बहुत होता है। क्योंकि सोच को हमेशा ऊंची रखें। "गधे की सवारी करने की बजाय शेर का पंजा खाना" अधिक बेहतर होता है। तो ये बातें हैं आचार्य चाणक्य की, चाणक्य नीति की, उम्मीद है आपको पसन्द आई होगी, धन्यवाद।
बोर होने लगें हैं तो अपने मनपसंद गीत पढ़ें और गुनगुनाते हुए मन को शांत करें।
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