What is Goal smart goal setting in hindi- लक्ष्य क्या है? लक्ष्य निर्धारण कैसे करते हैं?
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Importance of Goal in life लक्ष्य की जीवन में महत्ता।
क्या आपको कोई ऐसा व्यक्ति मिला है जो खुश न रहना चाहता हो, परिवार को खुश न रखना चाहता हो, सफल न होना चाहता हो। चाहने भर से, इच्छा करने से कुछ हासिल नहीं होता अपनी इच्छाओं को लक्ष्य (Goal) में बदलने से हासिल किया जा सकता है। लक्ष्य (Goal) के बारे में जितनी भी बातें हैं उन सब का यहां वर्णन मिलेगा।
What is Goal? लक्ष्य क्या है?
एक बार एक चौराहे पर खड़े एक व्यक्ति से एक राहगीर ने पूछा, "मुझे किस रास्ते से जाना चाहिए?" इस पर उस व्यक्ति ने राहगीर से पूछा, "आपको जाना कहां है?" राहगीर ने कहा, "पता नहीं।" उस आदमी ने कहा, "तो आप कोई भी रास्ता चुनकर किसी भी रास्ते पर जा सकते हैं।"
लक्ष्य के बारे में बताइए? What about the goal?
लक्ष्य की उपज इच्छा से होती है। परन्तु स्मरण रहे इच्छाएं लक्ष्य नहीं है, केवल इच्छाओ से जीवन में कुछ नहीं मिलता, अपितु इच्छाओं को लक्ष्य में परिवर्तित करना होता है, जब हमारा लक्ष्य बनता है।
दुनिया में शायद ही कोई ऐसा हो जो दौलत, शौहरत, मान, सुख चैन की चाहत न रखता हो। हर व्यक्ति जीवन में सफलता की कामना करता है। सभी सबकुछ चाहते हैं, परंतु पाते नहीं। क्यों? क्योंकि वे सिर्फ चाहते भर हैं। उन चाहतों को अपना लक्ष्य नहीं बनाते। हद तो इस बात की है कि वो कोई बदलाव ही नहीं करते, और ना बदलाव चाहते हैं।
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असल में देखा जाए तो लोग अपनी इच्छाओं को ही अपना लक्ष्य मान लेते हैं। उन्हें लक्ष्य नहीं बनाते। और अगर बना भी लेते हैं तो उस लक्ष्य को पाने के लिए जो मेहनत करनी होती है, उसे नहीं करते, कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है वाली तर्ज को ना अपनाकर कुछ भी त्यागने को तैयार नहीं होते।
बीच राह में बैठ कर स्वयं को समझाने के लिए कोई भी बहाना बना लेते हैं। किस्मत का या किसी वस्तु विशेष के अभाव का बहाना बना लेते हैं। अपनी आत्मशांति के लिए विकल्प तलाशने लगते हैं और किसी दूसरी इच्छा का सहारा लेकर नया लक्ष्य गढ़ने पर काम शुरू कर देते हैं।
लक्ष्य निर्धारित क्यों करना चाहिए इसके लाभ क्या हैं?
दुनिया में भांति भांति प्रकार के लोग हैं या हो सकते हैं। कुछ लक्ष्य बनाते हैं कुछ नहीं! आइए जानते हैं।
1. ऐसे लोग जो जीवन को लक्ष्यहीन जी रहे हैं वह जिंदा है, क्योंकि मरे नहीं है ऐसे लोग जो दिशाहीन व गति हीन जीवन व्यतीत कर रहे हैं, इनका नामकरण आप स्वयं करें कि इन्हें क्या कहेंगे?
2. हर बात में कुछ न कुछ कहना। कहना, बहुत कुछ पर करना कुछ नहीं। उन्हें पता ही नहीं उनका लक्ष्य क्या है? कार्य करने का मकसद क्या है? आखिर क्यों ऐसा कर रहे हैं पता ही नहीं होता। ठीक वैसे ही जैसे कुत्ता किसी गाड़ी के पीछे भागता है पर क्यों? क्या उसे गाड़ी खरीदनी है? या गाड़ी वाले से कोई काम है, या उससे कुछ सलाह मशविरा करना है? अगर गाड़ी रुक जाए तो वापसी में खिसियाकर लौट जाना। बेमतलब बेवजह कार्य करने वालों को क्या कहेंगे?
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3. वह महानुभाव जिन्हें पता है कि उन्हें करना क्या है? उन्हें अपने लक्ष्य, अपने उद्देश्य की संपूर्ण जानकारी होती है। उसे कैसे पाया जाएगा यह भी पता है। बना तो लिया अपना लक्ष्य पर उसे पाने के लिए की जाने वाली मेहनत और त्याग भावना से कतराते हैं। आश्चर्य के साथ मजे की बात यह है कि इन्हें सभी तरह का ज्ञान होता है। क्या सही है? क्या गलत है? की पहचान होते हुए भी मजे की बात यह है कि करते गलत ही है। जी हां! वे करते गलत ही हैं।
ज्ञान की, सूचनाओं की, विश्लेषण की लगभग हर तरह की खूबियां होती हैं इनमें। कमी के नाम पर अगर कहे तो सिर्फ इनमें जरूरत से ज्यादा सोचने की होती है जो इनके लिए घातक हो जाती है, क्योंकि ये बेवजह की बातें सोचकर समय व्यर्थ करते रह जाते हैं और अपने ज्ञान, अपनी काबिलियत का अपने जीवन में इस्तेमाल नहीं कर पाते। इन्हें भी आप नाम दीजिएगा कि इन्हें क्या कहें?
4. विजेता:- आप कहेंगे कि इनका नामकरण पहले ही। क्योंकि ऐसे लोग दूसरों के विचारों की बाट नहीं देखते। बेवजह की सोच में अपना समय व ऊर्जा नष्ट नहीं करते। ऐसे लोग जो जीवन में बड़े लक्ष्य स्थापित करते हैं और उन्हें हासिल करने के लिए जितनी मेहनत की आवश्यकता होती है उसे करने से भी नहीं हिचकते। क्योंकि ऐसे लोग जानते हैं की सफलता सस्ते में नहीं मिलती परंतु यह कभी भी महंगी भी नहीं होती।
लक्ष्य प्राप्ति के लिए किन किन गुणों की आवश्यकता होती है? What qualities are required to achieve the goal?
अपनी चाहत अपनी अभिलाषा को लक्ष्य में परिवर्तित करने के लिए निम्न गुणों की आवश्यकता है।
- योजना व दिशा
- निष्ठा, श्रद्धा व लगनशीलता
- अनुशासन
- समयावधि
योजना व दिशा:- लक्ष्य कोई भी हो, उसकी प्राप्ति हेतु सर्वप्रथम किसी योजना का होना पहला कदम है। चाणक्य नीति कहती है कार्य छोटा हो या बड़ा उसे शेर की तरह करें। शेर में यह गुण होता है कि वह किसी भी शिकार को अपनी पूरी शक्ति लगा कर करता है। शेर शिकार के छोटे बड़े पन को ना देखकर उस पर अपनी पूरी शक्ति लगाकर वार करता है।
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ऐसे ही लक्ष्य को छोटा समझकर अपनी ऊर्जा किसी बड़े लक्ष्य के लिए बचाकर रखना गलत होगा। योजना छोटी हो या बड़ी सही दिशा व ईमानदारी से कार्य करने का गुण होना चाहिए। किसी बड़ी योजना-लक्ष्य के लिए भी तो शुरुआत पहले कदम या ज़ीरो से ही तो करनी होगी।
श्रद्धा व लगनशीलता का गुण लक्ष्य प्राप्ति में होना चाहिए।
कहते हैं किसी की निष्ठा, विश्वास, लगन के आगे तो भगवान को भी झुकना पड़ता है। उस चिड़िया की कहानी तो याद होगी, समुद्र के किनारे रखे अपने अंडो को समुद्र की लहरों द्वारा बहा ले जाने पर वह चिड़िया प्रण करती है कि अगर समुद्र ने मेरे अंडे वापिस नहीं किए तो वह मिट्टी से समुद्र को भर देगी। और चिड़िया अपनी चोंच से मिट्टी भर भर कर पूरी निष्ठा व लगनशीलता से समुद्र में डालने लगती है। उसका मजाक भी उड़ाया जाता है, परन्तु अपने इस विश्वास को कि वह मिट्टी से समुद्र को भर सकती है टूटने नहीं देती। उसकी निष्ठा व लगनशीलता से भयभीत होकर समुद्र को भगवान की शरण लेनी पड़ती है, और उस चिड़िया के अंडे लौटाने पड़ते हैं।
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कहानी भले ही काल्पनिक हो परन्तु यह सत्य है कि जीतने के विश्वास से, और श्रद्धा, निष्ठा और लगन से किए कार्य में विजयश्री अवश्य मिलती है।
लक्ष्य प्राप्ति हेतु निष्ठा व लगन का होना दूसरा अनिवार्य चरण है। वह जज्बा होना चाहिए कि लक्ष्य पाना ही पाना है उसके लिए कितनी ही मेहनत, कितनी ही कुर्बानी देनी होगी वह देंगे। स्मरण रखे अगर लक्ष्य की प्राप्ति ना हो और हमे कोई पश्चाताप न हो तो मान लीजिए कि वह आपका लक्ष्य था ही नहीं, वह आपकी इच्छा मात्र थी जिसे आप लक्ष्य में परिवर्तित नहीं कर पाए। मसलन मेरी चाह हो किसी कंपनी का एम डी बनने की अगर यह किसी तरीके से हो जाए तो मुझे खुशी होगी परन्तु ऐसा ना हो पाया तो दुख नहीं होगा क्योंकि मैने इस ओर कोई प्रयास किया ही नहीं।
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अनुशासन:-यह ऐसा शब्द है जिसके मायने सदैव लाभकारी व लगभग हमेशा ही उपयोगिता पूर्ण होते हैं। यहां अनुशासन से अभिप्राय स्वशासन है। स्वयं पर अपना अधिकार। अनुशासन की व्याख्या की बात करें तो अनेक हैं। उनमें से जो सबसे महत्वपूर्ण है उसके मद्देनजर जो कार्य जरूरी हैं उन्हें पहले व जरूर करें, और गैरजरूरी कामों को त्यागे।
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अक्सर हम दूसरों को ही क्या स्वयं से भी महसूस किया होगा कि हम उस कार्य के पीछे भी लग जाते हैं जिनका जीवन में कोई महत्व ही नहीं होता। साथ ही साथ हमारी अंदर की रेड लाइट हमे सिग्नल भी देती रहती है कि हम ये क्या करने लगे, करना तो कुछ और ही था।
परन्तु बेवजह के आंनद या बिना मकसद की धाक जमाने के चक्कर में, करने वाले जरूरी काम को छोड़ कर; गैरजरूरी कार्य करने लग जाते हैं। इनसे तुरन्त खुशी तो मिलती है, पर लंबे समय तक दुख। समय को नुक़सान पहुंचाने वाली गतिविधियों की ओर आकर्षण जैसे राजनीति, क्रिकेट, टी वी शोज़ वगैरह न कर अगर लंबे समय में लाभ पहुंचाने वाली गतिविधियों को करे, चाहे वो शुरू में पीड़ादायक ही हो पर अनुशासन का एक हिस्सा तो हैं।
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कभी कभी हमारी सोच भी जीवन में मायने न रखने वाली, जिनका जीवन में कोई मतलब नहीं ऐसी बातों की ओर अग्रसर होने लगती है, जिसे हम कहेंगे कि सोच भी पटरी से उतरकर वाहियात सोच की और कदम उठाती है जो निहायत गलत बात होती है।
कहा जाए तो अधिकतर लोग कच्चेपन, छोटी सोच और छोटे छोटे लालच के कारण अपने अनुशासन में नहीं रह पाते, अपनी दक्षता अपने हुनर (Tallent) का लाभ नहीं उठा पाते और अपने लक्ष्य से चूक जाते हैं, लक्ष्य से हाथ धो बैठते हैं। इसलिए अनुशासन का गुण जो तीसरा चरण है वो होना चाहिए।
समयावधि:-यह कहना गलत ना होगा कि हमारी इच्छा में समयसीमा निर्धारित ना हो तो वह फक्त चाहत ही रह जाती है। लक्ष्य में परिवर्तित नहीं होती। बात आपकी भी जायज है कि समय सीमा के कारण दबाव बढ़ेगा उससे तनाव उत्पन्न होगा। परन्तु सृजनात्मकता के कारण यह जरूरी भी है।
कुछ लोग ऐसे भी हैं जो दबाव में काम करके ही अपना शतप्रतिशत देते हैं। जहां तक मेरा मानना है समायावधि के कारण ही हम अपने काम के लिए अपनी ऊर्जा, क्षमता, अपने साहस का अधिक से अधिक उपयोग करते हैं। कोई दिन धरने के बाद ही शादी ब्याह संपन्न हो पाते हैं अन्यथा ये तो शायद टलते ही रहें।
लक्ष्य निर्धारण क्या है?- What is Goal Setting?
यह कहना गलत नहीं होगा कि लोग जीवन में लक्ष्य बना तो लेते हैं लेकिन उन्हें पाने के लिए जिस दृढ़ निश्चय और साहस की जरूरत होती है उसका उपयोग न कर अपने लक्ष्य से वंचित रह जाते हैं।
याद रखिए लक्ष्य बनाना और उसे गंभीरता से अमल में लाना दो अलग पहलू हैं, जब तक उन्हें एक न करेंगे क्या हासिल होगा? लक्ष्य बना लिया है, तो उसे प्रयोग में लाएं। किसी सोमवार, किसी शुभ दिन का इंतजार लक्ष्य को टालने का बहाना भर है, अपनी जिम्मेदारियों से भागना है, अपनी अंदर की आवाज पर ध्यान दें, जो कह रही है कि आज जो आपने खाया उसके एवज में कुछ किया है क्या? जागो तभी सवेरा है उल्लू के लिए तो दिन में भी अंधेरा है।
आप सब ने क्रिकेटर एम एस धोनी पर बनी फिल्म तो जरूर देखी होगी। आपको याद हो कि कहानी के एक मोड़ पर जब धोनी की जिंदगी के उस पहलू को दिखाया जाता है, जब उनका एग्जाम भी होता है और उन्हें क्रिकेट प्रैक्टिस के लिए भी जाना होता है। वहां धोनी यह निर्णय लेते हैं कि वे अपने एग्जाम के पेपर को पूरे तीन घंटे देने की बजाय अधिक से अधिक दो से ढाई घंटे ही देंगे अगर पूरा समय देंगे तो वह ट्रेन नहीं मिल पाएगी जिससे उन्हें प्रैक्टिस के लिए जाना होता है।
ऐसा नहीं है कि उन्हें एग्जाम में फेल होने का भय नहीं होता है, होता है वह एग्जाम के लिए भी इतने ही गंभीर होते हैं। परन्तु वह एग्जाम में उतना ही लिखते हैं जितना कि उतने समय में लिखा जा सके और पास होने के लिए प्रयाप्त हो, क्यों? क्योंकि उनका अपना निर्धारित लक्ष्य स्पष्ट था। वे प्रैक्टिस को भी एग्जाम के बहाने से नहीं टालते और ना ही एग्जाम को प्रेक्टिस के बहाने से टालते हैं।
लक्ष्य निर्धारण के साथ समर्पण चाहिए? Need dedication with goal setting?
एक महान व्यक्ति में यही तो गुण होते है। चुनौतियों से डरने कि बजाय उन्हें स्वीकारना, उन से मुंह फेरने की बजाय डटकर उन्हें सुलझाने के बारे में सोचना और मुंहतोड़ जवाब देना।
तो क्या महसूस किया आपने? क्या ऐसा हम कर सकते हैं। हम तो तीन घंटे के पश्चात भी और पांच मिनट के उम्मीद मे रहते है या अगर हमे 70 नम्बर का पेपर आता है उतना हो जाने पर भी पांच सात नंबर की और उम्मीद करते हैं। क्योंकि हमारा लक्ष्य स्पष्ट नहीं होता निर्धारित नहीं होता। यदि हम सौ नम्बर के लक्ष्य को निर्धारित कर चलते तो यकीन मानिए वह शतप्रतिशत होता।
ये बहाने कभी भी बनाए जा सकते हैं। आप अगर कहें, वो तो धोनी हैं, अरे भई आज वो महान एम एस धोनी हैं शुरुआत में तो आम जन ही थे बस फर्क सिर्फ इतना है उन्होंने अपने लक्ष्य को निर्धारित किया और हर कार्य को निष्ठा, स्वशासन, लगनशीलता, कड़ी मेहनत व ईमानदारी से अंजाम दिया बगैर किसी फल कि इच्छा के, परन्तु ईमानदारी से किए कार्य का फल ना मिले ऐसा हो नहीं सकता।
अपना लक्ष्य कैसे चुनें? हमे कैसा लक्ष्य बनाना चाहिए?
अपना लक्ष्य चुनते वक्त इन छोटी छोटी बातों का ध्यान रखे तो बेहतर होगा कि हमारे लक्ष्य कैसे होने चाहिए।
मात्रात्मक या परिमाणात्मक (Quantitative Goals):-
सदैव ऐसे लक्ष्य बनाए जिनकी उन्नति पर उन्हें नापा जा सके। जिनकी तुलना की जा सके। जिनका तुलनात्मक अध्ययन किया जा सके। लक्ष्य की उन्नति की मापकता करने पर हमे पता चल सके कि अब हम कहां हैं, शुरुआत में कहां थे, और लक्ष्य से अब कितनी दूरी पर हैं। नहीं समझें?
अभिप्राय यह है कि अगर हमने 100 किलोमीटर जाने का लक्ष्य बनाया और बीच में हमे पता करना हो कि अभी तक हमने कितनी दूरी तय कर ली तो मापकीय अध्ययन करने पर हमें पता चल सकता है कि कहां पहुंचे और कितना चलना बाकी है। मापकीय लक्ष्य से हमारा मन बढ़ेगा हममें उत्साह के साथ नई ऊर्जा का संचार होने का लाभ भी मिलेगा।
लक्ष्य चुनौतीपूर्ण होने के साथ - साथ संभावित भी हो:-The goal should be challenging as well as possible:
लक्ष्य चुनौतीपूर्ण तो हो, परन्तु असंभव की कामना के साथ ना हो। इससे निराशा के सिवाय कुछ नहीं मिलेगा। यह सत्य है कि कोई भी काम असंभव नहीं होता है, इसे सदा स्मरण रखे। लक्ष्य सदा मुश्किल व चुनौतीपूर्ण हो परन्तु प्राप्त किया जा सकने वाला है यह मान कर चले। आसान लक्ष्यों में उन्नति की संभावना नहीं होती, परन्तु ऐसा भी ना हो जिसका "अ" भी हमे ना पता हो।
लक्ष्य जो प्रामाणिक हो Goals that are authentic
लक्ष्य ऐसे हों जिन्हें महसूस किया जा सके। लक्ष्य हासिल होने पर उसका प्रमाण प्रस्तुत किए जा सकने योग्य हो। क्यों? क्या ऐसे में दिखावटी पन नहीं छलकेगा। नहीं! क्योंकि कोई भी लक्ष्य तब तक स्पष्ट नहीं होता जब तब उसे महसूस न किया जा सके, उसके परिणाम स्वरूप प्रमाण को न देखा सके।
लक्ष्य जो प्राप्ति योग्य व वास्तविकता व सत्यता के करीब हों। Goals that are attainable and close to reality and truth.
लक्ष्य बनाते वक्त आपका उस लक्ष्य में विश्वास होना आवश्यक है। लक्ष्य जो आपके, आपके समाज, परिवार, देश, संस्थान आदि से किसी न किसी रूप में जुड़े होने चाहिए। इतना ही नहीं इनमें से किसी न किसी एक की उन्नति संभवत अवश्य होनी चाहिए। लक्ष्य में विश्वास से अभिप्राय है कि लक्ष्य को वास्तविक रूप देने के लिए अपने पिछले अनुभवों से तुलना करना आवश्यक है क्योंकि पिछली गलतियों को ना दोहरा कर नए सिरे से शुरुआत, तभी उनसे लाभ उठाया जा सकेगा।
लक्ष्य कैसे बनाए:-How to make goals: -
लक्ष्य बनाने से पहले अगर आपको लक्ष्य की विशेषताओं की जानकारी हो जाए तो अपना लक्ष्य बनाने में किसी किस्म की कोई परेशानी नहीं होगी। आपके सम्मुख प्रस्तुत है वो बातें जो विशिष्ट लक्ष्य में होती हैं।
आपके लिए कुछ प्रश्न हैं जिनका उत्तर आप अपने आप से पूछे और जवाब के रूप में एक कागज पर उतार लें। चमत्कारिक रूप में आप देखेंगे कि आप अपना लक्ष्य बना चुके होंगे। चलिए
प्रश्न पहला:- क्या?:- आप क्या प्राप्त करना चाहते हैं? आखिर पाना क्या है? अपने आप से पूछिए।
प्रश्न दूसरा:- क्यों?:- जो भी आप पाना चाहते हैं वह क्यों पाना चाहते हैं? उसके पीछे आपका मकसद क्या है, उद्देश्य क्या है, कारण क्या है?
प्रश्न तीसरा:- कैसे? :- उसे पाने के लिए आपको क्या करना होगा? उसके लिए आवश्यकताएं क्या होंगी? उसके लिए कौन कौन सी मुश्किलों का सामना करना होगा?
प्रश्न चौथा:- कब?:- लक्ष्य को कब तक पाना है, उसकी समयावधि क्या है?
प्रश्न पांचवा:- कहां?:- से अभिप्राय स्थान से है। लक्ष्य पाने का स्थान कहां है।
प्रश्न छठा:- कौन?:- लक्ष्य में कौन शामिल है।
उम्मीद है लक्ष्य की ये विशेषताएं आपको अपना लक्ष्य बनाने में सहायक सिद्ध हुई होंगी और आपने अपना लक्ष्य बना भी लिया होगा।
अब आपने अपना लक्ष्य बना लिया तो यह भी जान लें कि लक्ष्य के प्रकार भी होते हैं।
लक्ष्य कितने प्रकार होते हैं:-What are the types of goals: -
There are mainly three types of goals
मुख्यत लक्ष्य तीन प्रकार के होते हैं
1. फलित या प्रभाव लक्ष्य-Outcomes Goals
2. कार्य या क्रिया लक्ष्य- Process Goals
3. प्रदर्शन लक्ष्य या performance Goal
नाम इनके अलग भले लगते हों पर इन तीनों को मिलाकर ही एक स्पष्ट लक्ष्य हासिल हो पाता है।
फलित लक्ष्य अर्थात प्राप्त फल मतलब किए हुए कार्य का परिणाम। जैसे:-
1. किसी विद्यार्थी ने ठान लिया कि इस बार फाइनल एग्जाम में मुझे नब्बे प्रतिशत नंबर लाने हैं, यह उस विद्यार्थी का परिणाम लक्ष्य हुआ।
2. कार्य लक्ष्य या प्रक्रिया लक्ष्य:- अब परिणाम लक्ष्य को हासिल करने के लिए उसे उसके लिए जो कार्य करने होंगे वह उसके प्रक्रिया लक्ष्य हुए।
संपूर्ण फोकस अपनी पढ़ाई पर रहेगा। रिवीजन पर ध्यान देना होगा।
हर कार्य समयानुसार हो सके, इसके लिए समय सारणी (Time Table) का गठन करना होगा।
इधर उधर की बातों में ध्यान देने की बजाय पढ़ने को ही अधिक तवज्जो देनी होगी।
3. प्रदर्शन लक्ष्य:- अब बारी आती है परफॉर्मेंस की। किस तरह से पढ़ा जाए, कि याद जल्दी हो।
समय सारणी को कितने प्रभावशाली तरीके से अपनाया जाता है।
पढ़ने में स्वयं को कितना झोंक जाता है या दिल को ऐसा बनाया जाए कि वह किसी और चीज के बारे में विचारे ही ना।
यह स्वयं की परफॉर्मेंस पर निर्भर करता है। इसी प्रकार आपने महसूस किया कि कार्य लक्ष्यों का निर्धारण प्रदर्शन लक्ष्यों को पाने के लिए किया जाता है और और फिर बेहतर से बेहतर परफॉर्मेंस देकर फल प्राप्त किए यानी अपने परिणाम लक्ष्य हासिल किए जाते हैं।
आपको एक बात यहां बताना जरूरी है कि आपने अपने प्रक्रिया लक्ष्य और प्रदर्शन लक्ष्य हासिल कर भी लिए तो कभी कभी आप परिणाम लक्ष्य से चूक भी सकते हैं। क्योंकि हो सकता है जिसके लिए आप ने कार्य किया वहां कुछ बदलाव हो गया हो। जैसे विद्यार्थी ने शत प्रतिशत तैयारी की परन्तु,वह एग्जाम में ना आया हो या उसे समझने में गलती हो गई हो, समय की अल्पता आदि की ओर ध्यान न दिया गया हो।
गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को समझाते हुए कहा था कि, "हे अर्जुन, तुम भले ही कितने बड़े धनुर्धर हो किन्तु तुम्हारा अधिकार सिर्फ धनुष बाण, तुम्हारी एकाग्रता शक्ति पर ही है, न कि उस हिरन पर जिस पर तुम निशाना लगा रहे हो वह तुम्हारे अधिकार क्षेत्र से बाहर है। यह जरूरी नहीं कि तुम्हारा बाण उस हिरन को लगे ही, क्योंकि उसी समय वह हिल सकता है, वहां से भाग सकता है।
इसीलिए ज्ञानी पुरुष अपने अधिकार क्षेत्र पहचानते हैं, और एक ही बार में अपने परिणाम लक्ष्य को हासिल ना करने पर विलाप नहीं करते, और ना ही थक कर बैठ जाते हैं। वे पुन: बदली हुई परिस्थिति का मुआयना कर स्वयं को उसके लिए फिर से तैयार करते हैं, परिस्थिति अनुसार एकबार फिर से अपना लक्ष्य निर्धारित करते हैं।
लक्ष्य प्राप्ति के उपाय या नियम क्या हैं? What are the measures or rules of goal attainment?
1. आप जो चाहते हैं वही कहे।
2. आप जो नहीं चाहते उसे कभी न कहें।
3. आपके लक्ष्य चुनौतीपूर्ण हों।
4. आपके लक्ष्य वास्तविक होने चाहिए।
5. लक्ष्य आपके प्रभाव क्षेत्र में होने चाहिए।
6. लक्ष्य हमेशा अपने अधिकार क्षेत्र में हों।
7. अपनी उन्नति का मूल्यांकन भी जरूरी है। जो अहम से परे हो।
8. संसाधनों की जांच परख करें।
9. हर कीमतों का आकलन करें।
10. सबसे महत्वपूर्ण अपने आपको पुरस्कृत करना।
लक्ष्य निर्धारण मतलब सफलता- Goal Setting Means Success
अगर कोई पूछे कि सफल और असफल व्यक्तियों के बीच अंतर क्या इच्छाशक्ति का होता है? आप कह सकते हैं अंतर इच्छाशक्ति का नहीं बल्कि शक्तिशाली इच्छा का न होना होता है। अधिकांश लोग पाने की इच्छा तो रखते हैं परंतु वह इच्छाशक्ति इतनी दृढ़ नहीं होती कि वह इसकी प्राप्ति के लिए कुछ भी त्याग करने को तैयार हों। ऐसे बहुत से उदाहरण मिल जायेंगे कि सफलता उन्हें ही मिलती है जो सफलता से कुछ भी कम लेने के लिए राजी नहीं होते। समझौता नहीं करते👍।
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