Story in Hindi for healthy relationship
Motivational stories in Hindi Rishton ko bigade nahi sudhare|प्रेरक व प्रेरणादायक कहानी रिश्तों को बिगाड़े नही सुधारें
Motivational story in hindi for Reletionship|रैस्पैक्ट, रिश्तों में मिठास, मजबूती व स्वस्थ रिश्तों के लिए जरूरी है
खैर! तो उनके स्वभाव के बारे में आपको बता दें कि वह कुछ इस किस्म के स्वभाव के थे कि वह तो किसी के भी साथ हंसी मजाक कर ले परंतु उनके साथ हंसी मजाक अगर कोई कर ले तो वह चिढ़ जाते थे, और चिढ़कर नाराज हो जाते और जहां भी या जिस भी व्यक्ति के घर में काम करते वहां से उठ खड़े होते और उनका काम बंद कर देते। पुरानी बात है पहले जहां कोई मिस्त्री किसी मिस्त्री ने काम छोड़ा हो तो दूसरा मिस्त्री वहां काम नहीं कर सकता था। आपसी तालमेल या सामाजिक तालमेल की वजह से ही ऐसा था। मकान बनाने वाले को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता था। परंतु शायद अब आजकल ऐसा कुछ नहीं है।
हमारे वह मिस्त्री जी एक बार इसी बात पर चिढ़ गए और नाराज होकर अपने घर की ओर प्रस्थान करने लगे। गांव का माहौल था दो चार आदमी बैठकर अपना हुक्का गुड़ुगुड़ा रहे थे। उन्हें अपने घर की ओर जाता हुआ देखकर उन्हें अपने पास बुलाया और कहा कि मिस्त्री जी पहले थोड़ा हुक्का वगैरा पी लीजिए। आपको जाना है हम आपको जाने के लिए नहीं रोकेंगे परंतु आप हमारी एक छोटी सी बात सुनते जाए क्योंकि हमें तो पता है आपको जाना है। हमें पता है एक बार आप नाराज हो गए तो आपको जाना ही पड़ता है। जाने से पहले हमारी एक छोटी सी बात तो सुनते जाईये। तब उन्होंने ये कहानी कही जो आपके सम्मुख प्रस्तुत है।
Story in hindi for motivation|
Motivational Moral short story
पूरानी बात है। एक बार कौओं के क्षेत्र में अकाल पड़ा। कौवे पानी व खाने के लिए तरसने लगे, बड़ा ही दुखद मामला कौओं के बीच उत्पन्न हो रहा था। सभी इसी उधेड़बुन में थे कि आखिर समस्या से छुटकारा कैसे पाया जाए। बहुत विचारने के बाद इस समस्या से निपटने के लिए समाधान निकाला गया।
समाधान यह था कि क्यों न इस विपत्ति की घड़ी में हम अपनी मौसी, 'मादा बगुला' जिसे कौओं ने बना रखा था या मुसीबत में बनाने वाले थे कुछ कहा नही जा सकता क्योंकि कौआ खुद किसी पर विश्वास नहीं करता तो हम क्यों करें। खैर हम मान लेते हैं कि मादा बगुला कौओं की मौसी लगती हैं। कौओं के बूढ़े बुजुर्गो ने यह समाधान दिया था कि उनके पास चला जाये। मादा बगुला जो किसी तालाब के किनारे रहती है, उसके पास खाने व पानी की कोई कमी नहीं होती। इस भयंकर परिस्थिति से निपटने के लिए मौसी का सहारा लेना एक समझदारी भरा कदम है। क्योंकि यहां रहे तो भुख और प्यास से मरना लगभग तय है। सब विचार विमर्श करने के पश्चात वे सब अपनी मौसी मादा बगुला के पास चले गए।
मादा बगुला (अगर इसे बगुली कहें तो सहूलियत होगी) तो बगुली के पास एक तालाब था जिसमें छोटी मोटी मछलियां मेंढक और भी जीव कीट पतंग आदि उस तालाब में थे जिन्हें खाकर वह अपना गुजारा कर रही थी।
जब ये महानुभाव मौसी के पास पहुंचे तो बड़ी ही सिद्दत से मौसी को प्रणाम किया। कौवों को देख वह बहुत खुश हुई, और आने का कारण पूछा। बताना क्या था? रो रो कर पर जब कौवों ने अपनी व्यथा बताई तो वह द्रवित होकर बोली कोई बात नही बच्चों तुम्हें घबराने की कोई जरूरत नही है। यहां जितने दिन चाहो रहो, जो भी कुछ मेरे पास खाने को है, वह तुम सबके लिए हाजिर है। तुम खुशी खुशी यहां रहो और जब भी तुम्हारे यहां बरसात वगैरह हो जाऐ और तुम्हारे क्षेत्र का माहौल बढ़िया हो जाये तुम्हारा जब दिल करे चले जाना। यह सब सुनकर कौवे बहुत खुश हो गए।
अब रोज का नित्य कर्म कुछ ऐसा हो गया कि सारे कौवे तालाब किनारे बैठ जाते और बगुली पानी में खड़ी हो जाती, पानी में नजर गढ़ाए देखती, कुछ नजर आता, नीचे झुक कर अपनी चोंच पानी में मारती और चोंच में जो भी मेंढक मच्छली पकड़ में आता उसे किनारे पर बैठे कौवों की ओर फेंक देती। उस पर कौवे टूट पड़ते। अब रोज का यही नित्य कर्म होने लगा। जहां कौवों को छोटे-छोटे रोटी के टुकड़ों पर इतनी मेहनत करनी पड़ती थी, वहीं बैठे बिठाए उनके मनपसंद का भोजन बगैर किसी मेहनत के मिल रहा था। कौवे अब आराम से सेहतमंद होते जा रहे थे।
नैतिक प्रेरक लघुकथा सार|Conclusion Moral motivational story
इसी नित्य नियम के चार पांच महीने गुजर गए। समय ने और मौसम ने करवट बदली कौवों के क्षेत्र का माहौल परिपूर्ण हुआ, खाने पीने की कमी दूर हुई। कौवों को अपने क्षेत्र के बारे में पता चला, अब यह न कहना कि कैसे पता चला, अरे भाई उनके भी अपने प्रेस पत्रकार होते हैं। जैसे पक्षी लोग इधर से उधर नही उड़ते रहते हैं। कुछ लोकल होते हैं कुछ लंबी उड़ानों भी तो होते हैं। जब अच्छे माहोल का पता चला और उन्होंने अपने क्षेत्र की ओर प्रस्थान करने का निर्णय लिया। रात को ही उन सब ने अपनी सभा करी और सुबह अपने घर की ओर जाने का निर्णय लिया साथ साथ यह भी विचारणीय था कि यहां जो हमने मौसी के पास समय गुजारा है उसका क्या? इस बारे में यह निर्णय लिया गया कि चलेंगे तो सही पर इसका एहसान लेकर नहीं चलेंगे, वर्ना इसका एहसान हमें हमेशा दबाता रहेगा। और फिर थोड़ी खुसर फुसर करके सब आराम करने लगे।
रोज की तरह सुबह हुई, वहीं नित्य कर्म कौवे तालाब किनारे बैठे हैं, बगुली पानी में खड़ी है, बगुली को पानी में छोटी मछली दिखती है बगुली झुकती है चोंच को पानी में मारती है मच्छली चोंच में, उसे कौवों की ओर फेंक देती है, परन्तु यह क्या कौवे उस पर टूट पड़ने की बजाय मुंह फेर लेते हैं, और बुरा सा मुंह बनाकर एक साथ कहते हैं, "हम ना खाते"। यह देख व सुन बगुली को पहले तो आश्चर्य होता है, फिर कुछ समझ न आने पर होने वाली घबराहट सी होती है। कुछ भी समझ में न आने पर बगुली पूछती है कि क्यों, क्या हुआ क्यों नहीं खाते? इस पर सारे कौवे फिर कहते हैं, कि हम नही खा सकते हमें बहुत अधिक शर्म आती है। बगुली के आश्चर्य का ठिकाना नही, एक साथ कई विचार कौन सी शर्म कैसी शर्म ऐसा मैंने क्या कर दिया कि इन बच्चों को आज शर्म आ रही है?
हिंदी में प्रेरक व प्रेरणादायक कथा
असमंजस में बगुली पूछती है कि कौन सी शर्म कैसी शर्म? कौवे बड़ी ही मासुमियत से कहते हैं, कि मौसी हमें शर्म इस बात की आती है कि जब भी आप पानी में चोंच मारने नीचे की ओर झुकती हैं ना तो हमें पीछे से आपका पीछे का (पिछवाड़ा) हिस्सा दिखता है तो हमें शर्म आती है, हम शर्म से पानी पानी हो जातें हैं। कौवों की बात सुनकर बगुली अवाक् रह जाती है।
नैतिक कहानी रिश्तों में भी अहसानमंद बने अहसानफरामोश नहीं
उसकी समझ में सब कुछ आ जाता है। वह समझ जाती है कि कौवों के क्षेत्र में माहौल दुरुस्त हो गया है और उनके जाने का वक्त आ गया है। बगुली कहती है, कि अरे मैं समझ गई कि तुम्हारे क्षेत्र का माहौल बढ़िया हो गया है और अब तुम्हें अपने घर जाना है तो जाओ, परन्तु मुझ अभागिन पर ये बदनामी तो मत बांधकर जाओ। मैंने तुम पर कोई अहसान नहीं किया है और ना हि मैं तुम्हें कोई अहसान मानने के लिए कह रही हूं।
अरे कमीनों अहसान तो तुम क्या मानोगे, तुम बेवजह ही मुझे बदनाम करे जा रहे हो। छः महीने से तुम्हे ये पिछवाड़ा दिखाई नही दिया।
प्रेरक कहानी हमारे रिश्ते में कटौती न हो
कहानी सुनाने के पश्चात उन बुजुर्ग वार ने कहा कि मिस्त्री जी आपको जाना तो है परंतु हमसे नाराज होकर या हमें गलत साबित करके तो कम से कम मत जाइए ऐसी ही बातें हर रिश्ते में होती हैं क्योंकि इंसान करता अपनी मर्जी से है लेकिन दोस्त दूसरों पर ही मर्डर कर अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश करता है यह एक सांसारिक नियम है या इंसानी मानसिकता है यह तो इंसान जाने या ऊपर वाला
आम रिश्तों में कहीं हम भी ऐसे कृतघ्न तो नही, कि किसी की मुसीबत में मदद लें और सहायता करने वाले का अहसान मानने की बजाय उससे बिगाड़ कर पल्ला झाड़ लें और एहसान फरामोश बन जाएं। हमारे आसपास ऐसी तादाद हो भी सकती है और शायद नही भी। आपसे सीखे और जताएं यह तो हमें पहले ही पता था। इस बारे में तुम्हें और जानना है तो हम और भी बता सकते हैं ये भी अहसास करा देंगे। आप शर्म या बेवजह की बहस से बचने के लिए हाथ जोड़कर क्षमा मांग लेने में ही भलाई समझते हैं।
प्रेरणा दायक कहानी से रिश्तों की अहमियत समझें
रिश्तों के बारे में मैं ज्यादा कुछ तो नहीं पर इतना जरूर कहूंगा 'कृतघ्नता' ही शायद इन्हें…...है। यह हर रिश्ते में मायने रखती है, निजी, सामाजिक, व्यवसायिक, व्यवहारिक वगैरह। बजाय इसके कृतज्ञता हो तो? हां यह जताने और जतवाने दोनों ओर की मायने रखती है।
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