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शनिवार, 11 मार्च 2023

जीवन की समस्याओं का समाधान का सरल उपाय

जीवन की समस्याओं का समाधान का सरल उपाय

सर्वप्रथम तो मान कर चलें कि जीवन का दूसरा नाम ही समस्याएं हैं। और आप यकीनन; यकीन करेंगे कि इनके बिना जीवन नीरस सा है। समस्या उन्हीं के समक्ष उपस्थित होती है जिनमे इन्हे ढोने एवं पछाड़ने का साहस होता है। 

बात जीवन की समस्याओं में एक अच्छा निर्णय लेने की है तो समस्याओं का फ्रेम वर्क करना होगा। मतलब उन्हें इंगित कर सही क्रम में रखें। कैसे? चलिए देखते हैं। 

समस्याओं को सुलझाने का बेहतर उपाय क्या हो?|जीवन की समस्याओं में एक अच्छा निर्णय कैसे लें? 

समस्याओं से जूझना आपने उस समय से शुरू कर दिया था जब आपने मानव रूप लिया भी नही था। स्पष्ट वैज्ञानिक तथ्य अनुसार आप सब जानते हैं कि मानव रूप लेने के लिए हमने, हम जैसे ही कई हजारों को पीछे छोड़ा है। इसलिए यह स्पष्ट हो जाता है कि आप; साहसी! तो संसार में आने से पूर्व के ही हैं। 

सबसे पहले समस्याओं की पहचान करें 

सबसे पहले समस्याओं को चिन्हित करें। मतलब कि वो कौन सी समस्याएं हैं जो आड़े आएंगी, आ गई हैं? 

पूर्व में उत्पन्न की गई समस्याओं के बारे में कुढ़ना गलत है। हां! वर्तमान में जिस भी तरह उनका समाधान होता है तो  सुलझाये अन्यथा भूलना ही बेहतर है। कुढ़ते रहने की बजाय उनका मंथन करके भूल सुधार करना उचित होगा। 

समस्याओं को सुलझाने का तरीका क्या हो?

समस्या को सुलझाने से पहले यदि हम समस्या को पहचान लें कि यह किस तरह की समस्या है तो हमारा आधा काम हो जाता है। 

रही बात समस्याओं को पहचानने की तो यदि हम समस्याओं का वर्गीकरण करें! तो मेरे हिसाब से इन्हें हम दो भागों में विभाजित कर सकते हैं। 

1. ऐसी समस्याएं जिन्हें समय के लिए छोड़ दिया जाए।

2. जिनका समाधान जरूरी है वरना भविष्य में कष्ट कारक साबित होंगी। 

1. ऐसी समस्याएं जिन्हें समय के लिए छोड़ दिया जाए।

कुछ समस्याएं ऐसी भी होती हैं जिन्हें समय पर छोड़ना पड़ता है। अर्थात उनका समाधान समय आने पर ही किया जा सकता है। अथवा समय अनुसार स्वयं ही सॉल्व हो जाती हैं। इनमें वे समस्याएं भी हैं जिनके बारे में पूर्वजों ने कहा है, "समय सब घाव भर देता है।" खैर!

2. वे समस्याएं जिनका समाधान जरूरी है वरना भविष्य में कष्ट कारक साबित होंगी। 

रही बात दूसरी तरह की समस्याओं की तो इस बारे में एक महान सख्शियत ने कहा है, "जीवन में दुख का कारण किसी बड़ी विपदा का आगमन नही, बल्कि उन छोटी छोटी क्रियाओं की पुनरावृति है जिन्हें छोड़ देना ही बेहतर है।" 

मेरा एक मित्र है अथवा कहें समस्याओं का दूसरा नाम। नहीं नहीं वह किसी के लिए समस्या नहीं है। परंतु समस्याओं को सुनियोजित ढंग से रखना उसे बहुत ही सटीक तरह से आता है। वह समस्याओं को पकड़ कर उन्हें फ्रेम करता है। यानी समस्या आने पर वह शांत चित्त होकर उसका विश्लेषण करता है। यदि समस्या समयानुसार हल होनी है तो भी और तत्काल हल करनी है तो भी उसे फ्रेम कर एक तरफ रख शांति से उसके समाधान पर विचार करता है। और यकीन मानिए। बेहद सटीक और सही निर्णय ले पाता है। 

इस काबिलियत के बारे में विश्लेषण कर मैने पाया कि वह कोई भी बड़ी से बड़ी समस्या आने पर विचलित नहीं होता। सदा शांत रहता है। मैने सोचा शायद उसकी सहनशक्ति अधिक है इसलिए वह स्वयं को काबू रख पाता है। परंतु मुझे संतुष्टि नहीं मिली। मैने एक दिन पूछ ही लिया कि आखिर वह समस्या आने पर बेचैन क्यों नहीं होता? 

Short story in Hindi समस्या के बारे में नही समाधान के बारे में सोचें

तो उसने दो टूक जवाब दिया, "बेचैन होके मिलेगा क्या?" 

मैने असंतुष्टि वाले अंदाज में कहा, "मतलब?" 

वह बोला, "मतलब कि समस्या आने पर बेचैन हो के मिलेगा क्या?"

मैने फिर झुंझला कर, "प्रभु! मेरे कहने का मतलब है, आप ऐसा कैसे कर पाते हैं।" 

मेरे इस अंदाज पर उसने मुस्कुराते हुए कहा, "देख समस्या आने पर हम सब समस्या के ही इर्दगिर्द नाचने लगते हैं। और हम जितना समस्या के बारे में विचारेंगे, समस्या हमें उतना ही डराएगी, और यकीनन बेचैनी भी डर के कारण ही होती है?" 

मैने फिर उसी अंदाज में कहा, "प्रभु थोड़ा स्पष्ट करेंगे।"

उसने फिर मुस्कुराते हुए मेरे चिरपरिचित अंदाज में कहा, "अबे गधे तुम सब समस्या को लेकर समस्या के ही बारे में सोचते हो और मैं समस्या को फ्रेम कर उसके समाधान के बारे में सोचता हूं।" 

सच कहूं तो यह बात भी मेरे सर के ऊपर से ही गई। मैने फिर कहा, "प्रभु ऊंहूं! ऊपर से गई।"

उसने कहा, "मुझे पता है तुझे उदाहरण बिना समझ नही आयेगा।"

मैं, "तो दीजिए प्रभु!"

"चल तुझे एक short story सुनाता हूं।" 

मैने उत्सुकता से कहा, "जरूर प्रभु!" 

उसने कहना आरंभ किया। एक बार एक कार एक नदी पुल के उपर से गुजर रही थी। तभी चालक को अहसास हुआ कि उसकी कार का एक पहिया पैंक्चर हो गया है। उसने गाड़ी रोकी। उतर कर देखा। सचमुच कार का पिछला एक पहिया पंक्चर था। उसने डिक्की खोलकर देखा, स्पेपनी है और सही सलामत है। वह आगे की कार्रवाई को अंजाम देने लगा।

वह अकेला ही था सो सारे कार्य उसे ही करने थे। वह पंक्चर हुए पहिए को खोलने लगा। जैक निकालकर लगाया। स्टेपनी डिक्की से निकाली। मतलब टायर बदलने की कार्रवाई करने लगा। वह अपनी कार्रवाई को जल्दी जल्दी अंजाम दे रहा था। कहानी में ट्विस्ट तब आया जब इसी कारवाई में पंक्चर पहिए से खोले गए चारों नट उसके पैर की ठोकर लगने से पुल से नीचे नदी के पानी में गिर गए। 

समझा जा सकता है कि उसके ऊपर क्या बीती होगी? गर्मी के दिन तो थे परंतु  अब उसे जो पसीना आया था वह गर्मी की वजह से नहीं था, डर का था। उसने रोड़ के आगे और पीछे नजरे दौड़ाई, सुनसान, दूर तक सन्नाटा। रोड़ के दांए बाएं जंगल। मतलब आसपास उसकी मदद हो सके ऐसा कोई सुराग नहीं था। अब वह क्या करे? उसकी उलझन बढ़ती ही जा रही थी। मान कर चलें कि शहर को वो काफी पीछे छोड़कर आ चुका था और उसके गंतव्य की दूरी भी काफी अधिक थी। साथ ही गंतव्य की राह में आने वाली कोई भी मदद कम से कम तीन से चार किलोमीटर दूर थी। अन्य वाहनों का भी आवागमन न के बराबर था। अब वह करे तो क्या करे? गाड़ी लोक करके जाए तो कैसे? साथ ही उसे जंगली जानवरों का भय, अंधेरा होने का भय, राह में मिलने वाले गाड़ी लूटने वालों का भय, यही सब सोच सोचकर वह घबराता रहा। 

अब मित्र ने मेरी ओर मुखातिब होकर कहा, "अब तू बता तू होता तो क्या करता?"

मैने कहा, "हां यार! अब क्या किया जा सकता है? वहीं गाड़ी छोड़ने के अलावा।"

उसने कहा, "देखा समस्या आने पर यदि उसे फ्रेम नही किया तो यही नौबत आती है।" 

मैने कहा, "महाप्रभु, तो उसने क्या समाधान खोजा?"

मित्र ने कहा, "वो कहां समाधान खोजने के लायक था? उसने उस समस्या के बारे में सोच सोचकर और दूसरी अनेकों समस्याएं पैदा कर ली थी।"

"हूं! तो कोई न कोई आया होगा?" मैने उत्सुकता से कहा, "तो उसने क्या समाधान दिया?" 

उसने आगे कहना प्रारंभ किया, तभी वहां बकरियों के साथ एक बकरी चराने वाला आया। उस आदमी ने उससे पूछा कि आसपास कोई मदद मिल सकती हैं। तो उस बकरी चराने वाले ने भी वही सब बता जिस बारे में उस व्यक्ति को जानकारी थी। 

गाड़ी वाला व्यक्ति और अधिक निराश हो गया। बकरी चराने वाले से तो उसे क्या उम्मीद हो सकती थी? इसलिए उस ने उससे अधिक बाते करना व्यर्थ समझा। 

तभी बकरी चराने वाले ने उस व्यक्ति से कहा, "कि आप एक काम क्यों नहीं करते।" उस व्यक्ति ने बकरी वाले की ओर बिना किसी खास उपाय की उम्मीद के एक बार देखा और कहा, "कौन सा काम?" और वह अपनी गाड़ी के इर्दगिर्द नजरे दौड़ाने लगा।

बकरी वाले ने कहा, "आप हर पहिए का एक एक नट निकाल कर इसमें क्यों नहीं लगा लेते। और वैसे भी आप अकेले ही हैं। धीरे धीरे गाड़ी को चलाकर वहां तक पहुंच ही जायेंगे जहां आपको मदद मिल सकती है। वहां बाकी के नट लगवा लीजिएगा।" 

शुरुआत में तो उस व्यक्ति ने उसकी आवाज नजरंदाज की परंतु जब ध्यान से सुनी तो उसकी समस्या का समाधान हो चुका था।

उस गाड़ी वाले ने उसको धन्यवाद कहा और बोला "हां भाई यह तो मैंने सोचा ही नहीं। भाई क्या तुम पढे लिखे हो?"

बकरी वाला बोला, "नही, मैं कोई पढ़ा लिखा तो नही हूं। परंतु जब मेरी बकरी के छोटे बच्चे पानी पीने किसी तालाब, जोहड़ या सीमेंटड से बने किसी जलाशय तक नही पहुंच पाते तो मैं वहां आसपास पड़े फूटे मटके के ठीकरे में उन्हें पानी पिलाकर उनकी प्यास शांत करता हूं। तब मैं यही सोचता हूं कि इन्हें पानी कैसे पिलाया जाए। ना कि यह कि मेरी बकरी के बच्चे पानी नहीं पी पाएंगे तो प्यास के मारे बीमार हो जायेंगे, मुझे इन्हें लाना ही नही चाहिए था आदि। 

अब मैं इन्हें घर तो वापिस छोड़कर आ नही सकता, फिर आखरी विकल्प बचता है इन्हें पानी पिलाने वाला और उसी के समाधान के लिए विकल्प तलाशता हूं। सो यहां भी मैं यह इसलिए सोच पाया क्योंकि मैं इस गाड़ी को आगे कैसे बढ़ाया जाए ये सोच रहा था और आप यह सोच रहे थे कि रात को गाड़ी के साथ और आपके साथ क्या होगा? मतलब आप समस्या में ही नई समस्याएं निकाल रहे थे। और मैं मात्र समाधान तलाश रहा था।" 

मित्र ने कहा, "क्यों? हुआ ना समाधान!" 

मैने कहा, "हां यार! सही बात है। क्योंकि जब हम समस्या के बारे में ही सोचते हैं तो दूसरी नई समस्याएं ही उत्पन्न करते हैं।"

इसलिए समस्याओं को फ्रेम करो और फिर उसके समाधान की सोचो, परंतु शांत मन से। 


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