Short motivational story in hindi for success
Short motivational story in hindi for success कहानी अथवा कोई प्रसंग जिसे सुनकर, पढ़कर क्या आप और हम उत्साहित होते हैं? क्या किसी अतिरिक्त ऊर्जा का अनुभव करते हैं? किसी तरह के जोश के संचार का अनुभव होता है? आपका उत्तर जरूर सकारात्मक होगा।
चलिए आपके समक्ष ऐसी ही एक लघुकथा को प्रेषित करते हैं जो आपको सफलता के लिए लालायित कर दे। सफलता को स्पष्ट करे कि हां कुछ पाने के लिए खोना भी पड़ता है। और यह भी कि बहुत कुछ खोकर भी जब जिस सफलता को लक्ष्य बनाया था तो मिली अथवा मैंने मात्र समय ही खोया। पढ़ें Maturity quotes in hindi
Short motivational story for success in hindi
बात पुरानी है, किसी स्थान पर चार मित्र, मान लेते हैं किसी गांव में रहते थे। अपनी शिक्षा का भाग उन्होंने पूर्ण कर ही लिया था। चारों मित्र लगभग खाली (बेरोजगार) ही थे। उनमें से एक मित्र के मन में विचार आया कि जो हीरे जवाहरात होते हैं, वे कहां से आते हैं? उसने अपने बड़े बुजुर्गो से इस बारे में छानबीन की। जब उसे पता चला कि हीरो की खान होती है। तो उसने सोचा कि क्यों न हीरो की खान की तलाश की जाए। वैसे भी यहां रह कर समय नष्ट करके ही दिन तोड़ रहे हैं।
उसने इस बात का जिक्र अपने दूसरे मित्र साथियों से किया। बात पुरानी है, आज की तरह नहीं कि छोटी से छोटी बात का कहीं पर भी कभी भी पता चल जाता है। इसलिए उसके मित्रो को उसकी बात पर यकीन ही नहीं हुआ कि चमकने वाले हीरे किसी खान में मिलते हैं। उसने जानकार बुजुर्गो का हवाला दिया परंतु फिर भी उनके लिए विश्वास करना असंभव था। यकीनन जब हम असफलता के बिंदु पर खड़े होते हैं तब हमें अपनी निराशा की वजह से दूसरों की बातों पर विश्वास नहीं हो पाता। उमंग और उत्साह एवं खुशी हमे सफलता से ही मिलती है। जो हमारे हम पर विश्वास को बढ़ावा देती रहती है। और जब हम स्वयं पर भरोसा करते हैं तभी हमें दूसरो पर यकीन होता है।
परंतु दोस्ती का पर्याय ही विश्वास है, जो उन्हें अपने मित्र की आंखों में नजर आया। तीनों ने काफी तर्क वितर्क के बाद अपने मित्र की बात मानी। मित्रता के बीच तर्क वितर्क होना भी जरूरी है, क्योंकि क्या पता किससे क्या छूट जाए और वही दूसरे के मस्तिष्क में आ जाए। अपनी यात्रा का एक निश्चित समय निर्धारित करके उन्होंने सभा भंग की।
चारों मित्र एकमत विचार कर एक दिशा की ओर निकल पड़े। चलते रहे.. चलते रहे… हीरो की खोज में। आधा दिन गया, पूरा भी गया, शाम हुई और फिर रात भी हुई। रात को किसी स्थान पर आराम भी किया। सुबह उठकर फिर चल पड़े। इसी दिनचर्या को निभाते हुए चले जा रहे थे। साथ लाए भोजन की समाप्ति पर मांग कर भी खाया। कहीं कष्ट करने पर भोजन की व्यवस्था होती, वह भी किया। परंतु अपने लक्ष्य "हीरो की खान की खोज करनी है।" इसे अपने भीतरी मानस पटल पर अंकित किए चलते रहे अपना सब कष्ट भूलकर। विश्वास कीजिए जब हमारे पास कोई विशिष्ट लक्ष्य होता है तो शारीरिक कष्ट अनुभव ही नही होते।
हल्के से पहाड़ी क्षेत्रों में चल रहे थे, सूरज सिर पर था। चलते हुए एक मित्र को ठोकर लगी वह गिर पड़ा। सभी मित्र उसे उठाने भागे। तभी एक मित्र की नजर एक जगह पड़ी। अरे! यह क्या? यह तो लोहे जैसा कुछ है। हो न हो यदि यहां अच्छे से खुदाई की जाए तो लोहा प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने थोड़ा और खोदा तो सचमुच वहां लोहा मिलने की शत प्रतिशत उम्मीद थी। सभी ने विचार किया। हीरे तो पता नहीं मिले-मिले, ना मिले यदि इस लोहे की खान पर हम चारों मिलकर अच्छे से कार्य करें तो बहुत अच्छे से जिंदगी की बसर हो सकती है।
परंतु हीरे की खोज का मुद्दा उठाने वाला मित्र बोला कि जब लोहा मिला हो तो हीरे भी जरूर मिलेंगे। हमें आगे की यात्रा करनी चाहिए। जिस मित्र को ठोकर लगी उसने सुझाया कि भाई मैं तो इतने से ही संतुष्ट हूं। तुम्हे आगे जाना है तो जाओ और हां! यदि तुम्हे आगे कुछ ना मिले तो तुम्हारा मित्र लोहे की इस खान में तुम्हारा हमेशा स्वागत करेगा।
अपने उस एक मित्र को वहीं छोड़कर तीनों आगे बढ़ गए। उसी दिनचर्या अनुसार तीनों मित्र चलते रहे। जब जब जो जो होता है तब तब वो वो होता ही है। तीनों में से फिर एक मित्र को ठोकर लगी। पिछली बार जिस तरह मित्र के लिए भागे थे वैसे दोनो मित्रो ने अपने दोस्त को संभाला। यहां उन्हें तांबा की खान होने का अंदेशा हुआ। खोजबीन की तो पता चला, यहां तो तांबा का उत्पादन हो रहा है। यहां भी तीनों ने वही वार्ता की ओर अपने एक मित्र जिसकी आगे जाने की लालसा नहीं थी उसने तांबा की खान से स्वयं को संतुष्ट किया और पिछले मित्र द्वारा कहे शब्दों को दोहराया। उसे वहां छोड़कर अब दो मित्र आगे बढ़े।
यहां समझने वाली यह है कि आगे की यात्रा को जारी रखने वाले दो मित्र क्या अधिक लालची थे? क्या उन्हें हम लालची माने। तो यह बिल्कुल गलत होगा। क्योंकि अपना विशिष्ट लक्ष्य जीवन में मायने रखता है। और जो समझौता कर जीवन को आरामदायक समझकर संतुष्ट हो जाते हैं वे अपने विशिष्ट लक्ष्य को भूलकर विमुख हो जाते है। कोई अच्छी सैलरी की नौकरी मिलने पर भी हम आगे तरक्की की राह देखते हैं तो क्या वो लालच हैं? नही वो लालच नहीं है, वो हमारा कर्तव्य है। नौकरी तो हमारा एक पड़ाव मात्र है। हमें आगे ईमानदारी एवं मेहनत से कार्य करते रहना चाहिए।
खैर! दोनो मित्र आगे बढ़ते रहे। जाहिर सी बात है, उनकी यात्रा बड़ी होती गई तो उनकी ऊर्जा भी कम होने लगी। मन हमारा मित्र है तो बैरी भी है। नकारात्मक विचार भी परोसता है। स्वयं को शाबाशी ही नही देता हमें कोसवाता भी है। परंतु यही मुख्य बिंदु होता है, जिसने रिवर्स लिया वो चूक गया और जिसने स्वयं पर विश्वास करते हुए खुद को सकारात्मक किया और आगे बढ़ाया वो सफलता पा गया। उधेड़बुन में दोनो चले जा रहे हैं।
कर्म का फल मिलता ही है। दोनों में से एक की नजर किसी सुनहरी चीज पर पड़ी। दोनो ने खुदाई की। ये क्या? यह तो सोना रूपी धातु के समान है। यकीनन यह तो सोना ही है। यह खुशी पिछली दोनों खुशियों से अधिक थी। दोनों ने बात की, एक ने कहा कि चलो लोहा और तांबा से हम चारों का गुजर कुछ अच्छा न होता परंतु यह तो संसार की सबसे मूल्यवान धातु है। वो दोनो मित्र लोहा और तांबा से खुश हैं तो क्यों न हम दोनों इसी खान से स्वयं को संतुष्ट मान ले। सोना कोई कम थोड़े ना है। और वैसे भी हमारी शारीरिक ऊर्जा का काफी हनन हो चुका है।
हीरो की चाह मन में विचार करने वाला दूसरा मित्र जिसकी वजह से सभी इस मकाम तक पहुंचे थे, उसने कहा कि मित्र यदि तुम्हे लगता है कि तुम्हारे लिए यह सोना काफी है तो तुम गलत नही हो। हालांकि सोना संसार में बहुत कीमती है परंतु मेरा लक्ष्य हीरो की खान का है जिसे मैंने पाना है। मुझे यकीन है जब लोहा, तांबा और सोना मिला है तो हीरे भी अवश्य मिलेंगे। रही बात ऊर्जा की, तो हो सकता है तुम तीनों ने जितना सोचा था वहां पर तुम्हे अपना लक्ष्य मिल गया। तुम्हारी मेहनत तो रंग लाई परंतु तुम बड़ा सोच नही पाए। शायद इसे ही "जहां चाह है वहां राह है।" कहते हैं। अभी मेरी ऊर्जा उतनी ही है जितनी तब थी जब हमने यात्रा प्रारंभ की थी। और न ही तुम्हारी प्राप्त धातुओं से मुझे कोई लगाव है। कृपया मुझे हतोत्साहित न करें। मुझे अपने लक्ष्य पर जाने दें। यदि मुझे कुछ न भी मिला तो मुझे यकीन है तुम सब मुझे संभाल ही लोगे। इस पर मित्र ने कहा कि क्यों नहीं, हम तीनों को जो कुछ मिला है वह तुम्हारी बदौलत ही तो है।
अब चौथा मित्र अपनी यात्रा पर निकल पड़ा। आप सोच सकते हैं उसे भी अपना लक्ष्य मिलना ही था। उसे कुछ और कष्ट उठाकर अपनी यात्रा जारी रखी और उसे अपना मकाम मिला। उसे हीरो की खान मिली। जहां चाह होती हैं वहां राहें स्वयं बनने लगती हैं। मात्र संयम और ईमानदारी से हमारे अंदर छिपी दूरदृष्टि से उसे पहचानने की आवश्यकता है।
कहानी को काल्पनिक मान कर चले तो भी इससे सीख तो मिलती ही है -
1. अपना विशिष्ट लक्ष्य
2. यदि उसे हीरे न मिलते और मित्र भी साथ न देते तो उन तीनो खानों का अनुभव तो हो गया था। वह अकेला भी तलाश कर सकता था और भी कम समय में।
3. किसी भी लक्ष्य की सफलता के लिए की गई मेहनत, दिया गया समय कभी जाया नही जाता। सफलता न मिले तो भी अनुभव रूपी ज्ञान का भंडार तो बढ़ता ही है।
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