Short motivational story in hindi for success हमारी भावनाएं दोस्त या दुश्मन
भावनाएं होना अच्छी बात है, मगर कभी कभी ये भावनाएं हमारे लिए बेड़ियों का काम करके अपने पथ (लक्ष्य) से भी भटका देती हैं। सफलता की ओर विमुख होकर हमें असफलता की ओर धकेलने लगती हैं। हमारी असफलता का यह कारण बेहद मजबूती से कार्य करता है। फिर चाहे वो भावनाएं किसी और के प्रति हों अथवा स्वयं हमारे प्रति। चलिए इस short motivational story in hindi से विवेचना या स्वयं का विश्लेषण करते हैं।
Short motivational story in hindi success भावनाएं या बेड़ियां
एक जंगल में एक गुरु एवं शिष्य रहते थे। दोनों में आपसी प्रेम और सहयोग था। मिलकर भिक्षा मांगते और साथ साथ बनाकर खाते। भगवान का भजन करते। गुरु, शिष्य को अच्छी शिक्षा की बातें बताते, शिष्य श्रद्धा एवं ध्यान से गुरु की बातों को सुनता।
सर्दियों का मौसम था। एक रात घुप अंधेरी रात में जोर की वर्षा होने लगी। अस्त व्यस्त झोंपड़ी की छत से पानी टपकने लगा। गुरु ने शिष्य से कहा, "बेटा छत टपक रही है, जरा ऊपर जाकर इसे ठीक कर आओ।"
शिष्य के मन में गुरु के प्रति समर्पण था। परंतु वह अपनी भावनाओं में बहा - हे भगवान, सर्दी का मौसम है, बाहर गया और भीगा, मेरा तो ठंड से बुरा हाल हो जायेगा। खैर ठंड की भी देखी जायेगी परंतु छत के ऊपर से कहीं पैर फिसल गया तो टांग टूटे बगैर नहीं रहेगी। क्या करूं; क्या ना करूं? अपने स्वयं के लिए उठी भावनाओं ने गुरु के प्रति शिष्य की श्रद्धा और समर्पण की भावना को परे धकेल दिया और अपने लिए उठी भावनाओं में बहकर बचाव के विकल्प तलाशने का वो कार्य करने लगा जिसमें गुरु को भी बुरा लगे और स्वयं की आत्मा को भी पश्चाताप करने पर मजबूर करे।
शिष्य ने कहा, "गुरुदेव, यह क्या कह रहें हैं आप यदि मैं छत पर गया तो आप नीचे और मैं ऊपर। आपका सिर और मेरे पैर, यह निहायत ही गलत होगा।"
Motivational short story in hindi
गुरु तो गुरु ही होते हैं, शिष्य की ओर एक बार देखा। उन्होंने स्वयं ही छत पर जाकर छत को टपकने से रोकने का समाधान किया। गुरु ने गुस्सा न दिखाया तो शिष्य ने समझा गुरु जी को मेरी बात सही लगी।
थोड़ी देर में गुरु बोले, "बेटा खाना बनाने के लिए लकड़ियां कम है, बाहर जाकर जलने लायक थोड़ी लकड़ियां ही ले आओ।"
कहते हैं ना एक बार हमारा दांव चल जाता है तो दूसरा वार करने में हम पीछे नहीं हटते। कदापि यह भूल जाते हैं कि सामने वाले ने कुछ सोचकर ही कुछ नही कहा होगा। परंतु मन हमारा मित्र है तो मन ही हमारा बैरी भी है। फिर वही लालची भावनाएं, बाहर गया भीगने से बीमार होना पक्का और यदि बीमार न हुआ तो भी जंगल में बारिश की वजह से छिपे और भिन्नाए जंगली जानवर जरूर मुझे अपना भोजन बना लेंगे। फिर "गुरु जी, यह अपराध मुझ से न होगा। मैं जंगल की ओर जाऊंगा तो मेरी पीठ आपकी तरफ होगी। मैं आपकी तरफ पीठ कैसे कर सकता हूं?" शिष्य ने फिर अपनी भावनाओं में बहकर बढ़िया सा बहाना बनाया।
इस बार भी गुरु ने कुछ न कहा और जंगल में जाकर स्वयं ही कुछ जलने लायक लकड़ियां बीन लाए। जंगल से आकर गिल्ली सिल्ली लकड़ियों से आग जलाई और भोजन तैयार किया। भोजन तैयार होने के बाद गुरु ने शिष्य से कहा, "बेटा आ जाओ भोजन तैयार है, खाना खा लो।"
किसी अच्छे संपर्क में मिले संस्कार कहें अथवा कहें कि कभी न कभी अंतरात्मा हमें झिंझोड़ती अवश्य है। दोनों बार गुरु की अवहेलना और गुरु की किसी किस्म की कोई प्रतिक्रिया ने शिष्य को कायल किया। शिष्य भागता हुआ गुरु के चरणों में गिर पड़ा और बोला, "गुरुदेव क्षमा करें, मैंने आपकी अवज्ञा की, वह एक बार नही दो बार की, मुझे अपने मन के भय ने डराया था गुरुदेव।" गुरु ने शिष्य को उठाया और बोले, "बेटा गुरु भी माता पिता के समान ही है, वह अपने शिष्यों को डांटता है क्योंकि वह उनसे प्रेम करता है। तुमने कैसे सोच लिया कि मैं तुमसे कोई ऐसा कार्य करवाऊंगा जिससे तुम्हे हानि होगी। मुझे खुशी है कि तुम्हे अपनी गलती का अहसास हुआ। गलती करना गलत नही है परंतु बार बार गलती करना मूर्खता ही नहीं ढीठपना और अपराध भी होता है।"
ज्ञानवर्धक बातें|gyanwardhak baten
कहीं हम भी तो अपनी भावनाओं में बहकर अपने बचाव का विकल्प तो नही तलाशते? जवाब हां है या ना है इससे फर्क नहीं पड़ता। फर्क पड़ता है, क्योंकि जो विकल्प हम देते हैं उसके सकारात्मक परिणाम के विश्वास का। कैसे? वो ऐसे कि जिसके भी सामने हम बहाना बनाते हैं उसे हम जानते होते हैं, पूर्णत विश्वास होता है कि यह बहाना हमारा कारगर साबित होगा। क्यों? क्योंकि वह हमारा कोई नजदीकी, कोई खास होता है।
फिर चाहे हम स्वयं को कमजोर दिखाकर किसी काम को करने से इंकार करना हो या स्वयं के आराम में खलल न पड़े इसके लिए कांख में प्याज दबाकर शरीर का तापमान बढ़ाकर खुद को मरीज साबित करना हो। यह बहाने बाहर वालों के सामने कदापि नहीं चलते यह शत प्रतिशत सत्य है।
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